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प्रेमाश्रम


सिवा और क्या कह सकता हूं कि आपकी नीति शिक्षा और इथिक्स ने आपको कुछ भी लाभ नहीं पहुंचाया।

यह कह कर ज्ञानशंकर बाहर निकल आये। जिस मनोरथ से वह इतने सबेरे यहाँ आये थे उसके यों विफल हो जाने से उनका चित्त बहुत खिन्न हो रहा था! हाँ, यह आवश्य था कि मैंने इन महाशय के दाँत खट्टे कर दिये, अब यह फिर मुझसे ऐसी बातें करने का साहस नहीं कर सकेंगे। ज्वालासिंह ने भी उन्हें रोकने की चेष्टा नहीं की। वह सोच रहे थे कि इन मनुष्य ने बुद्धि-बल और दुर्जनता का कैसा विलक्षण समावेश हो गया? चातुरी कपट के साथ मिलकर दो-आतशा शराब बन जाती हैं। इस फटकार से कुछ तो आँखें खुली होंगी। समझ गये होंगे कि कूटनीति परखनेवाले संसार में लोप नहीं हो गये।

ज्ञानशंकर यहाँ से चले तो उनकी दशा उस जुवारी की-सी थी जो जुए में हार गया हो और सोचता हो कि ऐसी कौन-सी वस्तु दाँव पर लगा कि मेरी जीत हो जाय। इन चित्त उद्विग्न हो रहा था। ज्वालासिंह को यद्यपि उन्होंने तुर्की-बतुर्की जवाब दिया था फिर भी उन्हें प्रतीत होता था कि मैं कोई गहरी चोट न कर सका। अब ऐसी कितनी है बातें याद आ रही थीं, जिनसे ज्वालासिंह के हृदय पर आघात किया जा सकता था। और कुछ नहीं तो रिश्वत का ही दोष लगा देता। खैर, फिर कभी देखा जाएगा। अब उन्हें राष्ट्र-प्रेम और मनुष्यत्व का वह उच्चादर्शक भी हास्यास्पद-सा जान पड़ता था, जिसके आधार पर उन्होंने ज्वालासिंह को लज्जित करना चाहा था। वह ज्यों-ज्यों इस सारी स्थिति का निरूपण करने थे; उन्हें ज्वालासिंह का व्यवहार सर्वथा असंगत जान पड़ता था। मान लिया कि उन पर मेरी ईर्ष्या का रहस्य खुल गया तो सहृदयता और शालीनता इसमें थी कि वह मुझ पर सहानुभूति प्रकट करते, मेरे आँसू पोंछते। ईर्ष्या भी मानव स्वभाव का ही एक अंग है, चाहे वह कितना ही अवहेलनीय क्यों न हो। यदि कोई मनुष्य इसके लिए मेरा अपमान करे तो इसका कारण उनकी आत्मिक विचित्रता नहीं वरन् मिथ्याअभिमान है। ज्वालासिंह कोई ऋषि नहीं, देवता नहीं, और न यह संभव है कि ईर्ष्या-वेग से कभी उनका हृदय प्रवाहित न हुआ हो। उनकी यह गर्वपूर्ण नीतिज्ञता और धर्मपरायणता स्वयं इस ईर्ष्या का फल है, जो उनके हृदय में अपनी मानसिक लघुता के ज्ञान में प्रज्ज्वलित हुई है।

यह सोचते हुए वह घर पहूँचे वो अपने दोनों छोटे चचेरे भाइयों को अपने कमरे में किताबें उलटते-पुलटते देखा। यद्यपि यह कोई असाधारण बात न थी, पर ज्ञानशंकर इस समय मानसिक अशान्ति से पीड़ित हो हे थे। जल गये और दोनों लड़कों को डांटकर भगा दिया। इन लोगों ने अवश्य मुझे छेड़ने के लिए इन शैतानों को यहाँ भेज दिया। नीचे इतना बड़ा दीवानखाना है, दो कमरे हैं क्या उनके लिए इतना काफी नहीं कि मेरे पास छोटे-से कमरे को भी नहीं देख सकते। क्या इस पर भी दांत है? मुझे घर से निकालने की ठानी है क्या? इस मामले को अभी न साफ कर लेना चाहिए। यह कदापि नहीं हो सकता कि मुझे लोग दबाते जाएं और मैं चूँ न