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प्रेमाश्रम

दया न आयी। वहाँ बैठना तक अन्याय था। वह और कुछ न कर सकी, शीलगणि को अपने साथ ले कर दूसरे कमरे में चली गयी। वहाँ दोनो में देर तक बातचीत होती रही। श्रद्धा हत्या का सारा भार ज्ञानशंकर के सिर रखती थी। शीलमणि गायत्री को भी दोष का भागी समझती थी। दोनों ने अपने-अपने पक्ष को स्थिर किया! अन्त में श्रद्धा का पल्ला भारी रहा। इसके बाद शीलमणि ने अपना वृत्तान्त सुनाया। सन्तानोत्पत्ति के निमित्त कौन-कौन से यल किये, किन-किन दाइयो को दिसाया, किनकिन डाक्टरों से दवा करायी? यहाँ तक कि वह श्रद्धा को अपने गर्भवती हो जाने का विश्वास दिलाने में सफल हो गयी, किन्तु महाशोक! सातवे महीने गर्भपात हो गया, सारी आशाएँ धूल में मिल गयी। श्रद्धा ने सन्चे हृदय से समवेदना प्रकट की। फिर कुछ देर तक इधर-उधर की बातें होती रही। श्रद्धा ने पूछा-अव डिप्टी साहब का क्या इरादा है?

शीलमणि—अब तो इस्तीफा दे कर आये हैं और बाबू प्रेमशकर के साथ रहना चाहते हैं। उन्हें इन पर असीम भक्ति है। पहले जब इस्तीफा देने की चर्चा करते तो समझती थी काम से जी चुराते है, राजी न होती थी, लेकिन इन तीन वर्षों में मुझे अनुभव हो गया कि इस नौकरी के माथ आत्म-रक्षा नहीं हो सकती। जाति के नेतागण प्रजा के उपकार के लिए जो उपाय करते है सरकार उसी में विघ्न डालती है, उसे दबाना चाहती है। उसे अब भय होता है कि कहीं यहाँ के लोग इतने उन्नत न हों जाउँ कि उसका रोब न माने। इसीलिए वह प्रजा के भावों को दवाने के लिए, उसका मुंह बन्द करने को नये-नये कानून बनाती रहती है। नेताओं ने देश को दरिद्रता के चगुल से छुड़ाने के लिए चरो और करो की व्यवस्था की। सरकार उसमें बाधा डाल रही है। स्वदेशी कपड़े का प्रचार करने के लिए दुकानदारों और ग्राहकों को समझाना अपराध ठहरा दिया गया है। नशे की चीजो का प्रचार कम करने के लिए नवाजो और ठेकेदारों से कुछ कहना-सुनना भी अपराध है। अभी पिछले साल जव यूरोप में लड़ाई हुई थी तो सरकार ने प्रजा से कर्ज लिया। कहने को तो कर्ज था पर असल में जरूरी टैक्स था। अधिकारियों ने दीन दरिद्र प्रजा पर नाना प्रकार के अत्याचार किये, तरह-तरह के दबाव डाले, यहाँ तक कि उन्हें अपने हल-बैल बेच कर सरकार को कर्ज देने पर मजबूर किया। जिमने इन्कार किया उसे या तो पिटवाया या कोई झूठा इलज़ाम लगा कर फंसा दिया। बाबू जी अपने इलाके में किसी के साथ सख्ती नहीं की। कह दिया, जिसका जी चाहे कर्ज दे, जिमका न जी चाहे न दे। नतीजा यह हुआ कि और इलाकों में तो लाखों रुपये वसूल हुए, इनके इलाके में बहुत कम मिला। इस पर जिले के हाकिम ने नाराज हो कर इनकी शिकायत कर दी। इनमें यह ओहदा छीन लिया गया, दर्जा घटा दिया गया। जब मैंने यह हाल देखा तो आप ही जिद्द करके इस्तीफा दिलवा दिया। जब प्रजा की कमाई खाने है तो प्रजा के फायदे का ही काम करना चाहिए। यह क्या कि जिमकी कमाई खायें, उसी का गला दबाये। यह तो नमकहरामी हैं, घोर नीचता।