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प्रेमाश्रम

न हुआ। जा कर माया और महरियों को बुलाया। एक क्षण मे माया आ कर गायत्री के सामने खड़ा हो गया। महरियाँ बाग में झूल रही थी। भादो का महीना था, घटा छायी थी, कजली बहुत सुहावनी लगती थी।

गायत्री ने माया को सिर से पाँव तक देख कर कहा--तुम जानते हो कि किसके लड़के हो?

माया ने कुतूहल से कहा-इतना भी नही जानता?

गायत्री–मैं तुम्हारे मुँह से सुनना चाहती हैं जिसमें मुझे मालूम हो जाय कि तुम मुझे क्या समझते हो?

माया पहले इस प्रश्न का आशय न समझता था। इतना इशारा पा कर सचेत हो गया। बोला—पहले लाला ज्ञानशंकर का लड़का था, अब आपका लड़का हूँ।

गायत्र—-इसीलिए तुम्हे प्रत्येक विषय में ईश्वर के पीछे मेरी इच्छा को मान्य समझना चाहिए।

माया--निस्सन्देह।

गायत्री बाबू ज्ञानशंकर को तुम्हारे पालन-पोषण, दीक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं है, यह मेरा अधिकार है।

माया--आपके ताकीद की जरूरत नहीं, मैं स्वयं उनसे दूर रहना चाहता हूँ। जब से मैंने अम्माँ को अन्तिम समय उनकी सूरत देखते ही चीख कर भागते देखा तभी से उनका सम्मान मेरे हृदय से उठ गया।

गायत्री तो तुम उससे कहीं ज्यादा चतुर हो जितनी मैं समझती थी। मैं आज बद्रीनाथ की यात्रा करने जा रही हूँ। कुछ पता नहीं कब तक लौटू। मैं समझती हैं कि तुम्हें बाबू प्रेमशंकर की निगरानी में रखें। यह मेरी आशा है कि तुम उन्हें अपना पिता समझो और उनके अनुगामी बनों। मैंने उनके नाम यह पत्र लिख दिया है। इसे ले कर तुम उनके पास जाओ। वह तुम्हारी शिक्षा की उचित व्यवस्था कर देंगे। तुम्हारी स्थिति के अनुसार तुम्हारे आराम और जरूरत की आयोजना भी करेगे। तुमको थोड़े ही दिनो मे ज्ञात हो जायगा कि तुम अपने पिता से कहीं ज्यादा सुयोग्य हाथो में हो। संभव है कि लाला प्रेमशंकर को तुमसे उतना प्रेम न हो जितना तुम्हारे पिता को है, लेकिन इसमें जरा भी सन्देह नहीं है कि तुम्हें अपने आनेवाले कर्तव्यों का पालन करने के लिए जितनी क्षमता उनके द्वारा प्राप्त हो सकती है, तुम्हारे आचार, विचार और चरित्र का जैसा उत्तम संगठन वह कर सकते है, कोई और नहीं कर सकता। मुझे आशा है कि वह इस भार को स्वीकार करेंगे। इसके लिए तुम और मैं दोनो ही उनके बाध्य होंगे। यह दूसरा पत्र मैंने बाबू ज्ञानशंकर को लिखा है। मेरे लौटते तक वह रियासत के मैनेजर होगे। मैंने उन्हें ताकीद कर दी है कि बाबू प्रेमशंकर के पास प्रति मास दो हजार रुपये भेज दिया करे। यह पत्र डाकखाने भिजवा दो।

इतने में चारो महरियाँ आयी। गायत्री ने उनसे कहा मैं आज बद्रीनाथ की यात्रा करने जा रही हूँ। तुममें से कौन मेरे साथ चलती है?