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प्रेमाश्रम


बात सुन कर वह अधीर हो गया। ज्वालासिंह की तरफ कातर नेत्रों से देखता हुआ। बोला--आज्ञा हो तो मैं भी कुछ कहूँ।

ज्वाला–हाँ-हाँ, शौक से कहो।

माया--इस महीने की भेरी पूरी वृत्ति अपील में खर्च कर दीजिए। मुझे रुपयों की कोई विशेष जरूरत नहीं है। शीलमणि और ज्वालासिंह दोनो ने इस प्रस्ताव को बालोचित आवेश समझ कर प्रेमशंकर की तरफ मुस्कुराते हुए देखा। माया ने उनका यह भाव देख कर समझा, मुझसे धृष्टता हो गयी। ऐसे महत्त्व के विण्य में मुझे बोलने का कोई अधिकार न था। चाचा जी मेरे दुस्मान पर अवश्य नाराज होगे। लज्जा से आँखे भर आयी और मुंह से एक सिसकी निकल गयी। प्रेमशंकर ने चौक कर उसकी तरफ देखा, हृदृगत भाव को समझ गये। उसे प्रेमपूर्वक छाती से लगा कर आश्वासन देते हुए बोले- तुम होते हो क्यों बेटा? तुम्हारी यह उदारता देख कर मेरा चित्त जितना प्रसन्न हुआ है वह प्रकट नहीं कर सकता। तुम मेरे पुत्रतुल्य हो, लेकिन मेरा जी चाहता है कि तुम्हारे पैरो पर सिर रख दें। तुम्हारे हृदय में दया और विवेक है और मुझे विश्वास है कि तुम्हारा जीवन परोपकारी होगा, लेकिन मैंने तुम्हारी शिक्षा के लिए जो व्यवस्थाएँ की है। उनका व्यय तुम्हारी वृत्ति से कुछ अधिक ही है।

माया को अब कुछ साहस हुआ। बोला, मेरी शिक्षा पर इतने रुपय खर्च करने की क्या जरूरत है?

प्रेम-क्यों, आखिर तुम्हें घर पर पढ़ाने के लिए अध्यापक रहेंगे या नहीं? एक अँगरेजी और हिसाब पढायेगा, एक हिन्दी और सस्कृत, एक उर्दू और फारसी, एक फ्रेंच और जर्मन, पाँचवाँ तुम्हे व्यायाम, घोड़े की सवारी, नाव चलाना, शिकार खेलना सिखायेगा। इतिहास और भूगोल में पढाया करूंगा।

माया- मेरी कक्षा में जो लड़के सबसे अच्छे हैं वे घर पर किसी मास्टर से नहीं पढ़ते। मैं उनको अपने से कम नही समझता।

प्रेम-तुम्हे हवा खाने के लिए एक फिटन की जरूरत है। सवारी के अम्यास के लिये दो घोड़े चाहिए।

माया–अपराध क्षमा कीजिएगा, मेरे लिए इतने मास्टरो की जरूरत नहीं है। फिटन, मोटर, पोलो को भी मैं व्यर्थ समझता हूँ। हाँ, एक घोड़ा गोरखपुर से मँगवा दीजिए तो सवारी किया करूँ। नाव चलाने के लिए मैं मल्लाहो की नाव पर जा बैठूँगा। उनके साथ पतवार घुमाने और डाँड चलाने में जो आनन्द मिलेगा वह अकेले अध्यापक के साथ बैठने में नहीं आ सकता। अभी से लोग कहने लगे है कि इसका मिजाज नहीं मिलता। पदमू कई बार ताने दे चुके है। मुझे नक्कू रईसों की भांति अपनी हँसी कराने की इच्छा नही है। लोग यही कहेंगे कि अभी कल तक तो एक मास्टर भी न था, आज दूसरो की सम्पत्ति पा कर इतना घमंड हो गया है।

प्रेम-प्रतिष्ठा का ध्यान रखना आवश्यक है।