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प्रेमाश्रम

बेशक सजा के काबिल है, पर इस मुकदमे की हालत निराली है। यह सारा तूफान पुलिस का खड़ा किया हुआ है। इतने बेगुनाहों की जिन्दगी का ख्याल करके अदा लत को शहादत के कानून की इतनी सख्ती से पाबन्दी न करनी चाहिए। इन विनीत शब्दों ने जज साहब को शान्त कर दिया। पुराना जज तबदील हो गया था, उसकी जगह नये साहब आये थे।

सरकारी वकील ने भी अपने पक्ष के अनुकूल खूब जिरह की, सिद्ध करना चाहा कि गाँववालों की धमकी, प्रेमशंकर के आग्रह या इसी प्रकार के अन्य सम्भावित कारणों ने गवाहों को विचलित कर दिया; पर बिसेसर किसी तरह फन्दे में न आया। अँगरेजी और जातीय पत्रों ने इस घटना की आलोचना करनी शुरू की। अँगरेजी पत्रों का अनुमान था कि गवाह का यह रूपान्तर राष्ट्रवादियों के दुराग्रह का फल है। उन्होंने पुलिस को नीचा दिखाने के लिए यह चाल खेली है। अदालत ने इस बयान को स्वीकार गरने में बड़ी भूल की है। मुखबिर को यथोचित दंड मिलना चाहिए। हिन्दुस्तानी पत्रों को पुलिस पर छीटे उड़ाने का अवसर मिला। अदालत में मुकदमा पेश ही था, मगर पत्रों ने आग्रह करना शुरू किया कि पुलिस के कर्मचारियों से जवाब तलब करना चाहिए। एक मनचले पत्र ने लिखा, यह घटना इस बात का उज्ज्वल प्रमाण है कि हिन्दुस्तान की पुलिस प्रजा-रक्षण के लिए नहीं वरन् भक्षण के लिए स्थापित की गयी है। अगर खोज की जाय तो पूर्णत सिद्ध हो जायगा कि यहाँ की ६७ सैकडे दुर्घटनाओं का उत्तरदायित्व पुलिस के सिर है। बाज पत्रों को पुलिस की आड़ में जमीदारों के अत्याचार का भयंकर रूप दिखायी देता था। उन्हें जमीदारों के न्याय पर जहर उगलने का अवसर मिला। कतिपय पत्रों ने जमीदारों की दुरवस्था पर आँसू बहाने शुरू किये। यह आन्दोलन होने लगा कि सरकार की ओर से जमीदारों को ऐसे अधिकार मिलने चाहिए कि वह अपने असामियो को काबू में रख सके, नहीं तो बहुत सम्भव है कि उच्छृखलता का यह प्रचड झोका सामाजिक संगठन को जड़ से हिला दें।

बिसेसर साह के बाद डाक्टर प्रियनाथ की शहादत हुई। पुलिस अधिकारियों को उन पर पूरा विश्वास था, पर जब उनका बयान सुना तो हाथो के तोते उड़ गये। उनके कुतूहल का पारावार न था, मानो किसी नये जगत् की सृष्टि हो गयी। वह पुरुष जो पुलिस का दाहिना हाथ बना हुआ था, जो पुलिस के हाथों की कठपुतली था, जिसने पुलिस की बदौलत हजारों कमाये वह आज यो दगा दे जाये, नीति को इतनी निर्दयता से पैरो तले कुचले।

डाक्टर साहब ने स्पष्ट कह दिया कि पिछला बयान शास्त्रोक्त में था, लाश के हृदय और यकृत की दशा देख कर मैंने जो धारणा की थी वह शास्त्रानुकूल नही थी। बयान देने के पहले मुझे पुस्तकों को देखने का अवसर न मिला था। इन स्थलों में खून का रहना सिद्ध करता है कि उनकी क्रिया आकस्मिक रीति पर बन्द हो गयी। यन्त्राघात के पहले गला घोटने से यह क्रिया क्रम से बन्द होती और इतनी मात्रा में रक्त का जमना सम्भव न था। अपनी युक्ति के समर्थन में उन्होने कई प्रसिद्ध डॉक्टरों की