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प्रेमाश्रम


इर्फान—आप यह तसलीम करते है कि यह सब मुलजिम लखनपुर के खास आदमियो में हैं?

तहसीलदार--हो सकते हैं, लेकिन जात के अहीर, जुलाहे और कुर्मी हैं।

इर्फान--अगर कोई चमार लखपली हो जाय तो आप उससे अपनी जूती गंवाने का काम लेते हुए हिचकेंगे या नहीं?

तहसीलदार-उन आदमियों में कोई लखपती नहीं है।

इर्फान-मगर सब काश्तकार है, मजदूर नही। उनसे अपको घास छिलवाने को क्या मजाल था?

तहसीलदार—सरकारी जरूरत।

इर्फान-क्या यह सरकारी जरूरत मजदूरो को मजदूरी दे कर काम कराने से पूरी ने हो सकती थी?

तहसीलदार—मजदूरों की तायदाद उस गाँव में ज्यादा नहीं है।

इफन–आपके चपरासियो में अहीर, कुर्मी या जुलाहे न थे? आपने उनसे यह काम क्यों न लिया?

तहसीलदार---उनका यह काम नही है।

इर्फान—और काश्तकारो का यह काम है।

तहसीलदार-जब जरूरत पड़ती है तो उनसे भी यह काम लिये जाते हैं।

इफन---आप जानते हैं जमीन लीपना किसका काम है?

तहसीलदार---यह किसी खास जात का काम नहीं है।

इफन–मगर आपको इससे तो इन्कार नही हो सकता कि आम तौर पर अहीर और ठाकुर यह नहीं करते?

तहसीलदार जरूरत पड़ने पर कर सकते हैं।

इर्फान–जरूरत पड़ने पर क्या आप अपने घोड़े के आगे घास नही डाल देते? इस लिहाज से आप अपने को साईस कहलाना पसन्द करेंगे?

तहसीलदार--मेरी हालत को उन काश्तकारों से मुकाबला नही हो सकता।

इर्फान---बहरहाल यह आपको मानना पड़ेगा कि जो लोग जिस काम के आदी नहीं हैं वे उसे करना अपनी जिल्लत समझते हैं, उनसे यह काम लेना बेइन्साफी है। कोई बहुमन खुशी से आप के बर्तन धोयेंगे। अगर आप उससे जबरन यह काम लें तो वह चाहे खौफ से करे पर उसका दिल जख्मी हो जायेगा। यह मौका पायेगा तो आपकी शिकायत करेगा।

तहसीलदार--हाँ, आपका यह फरमाना बजा है, लेकिन कभी-कभी अफसरों को मजबूर हो कर सभी कुछ करना पड़ता है।

इर्फान-तो आपको ऐसी हालतो में नामुलायम बातें सुनने के लिए भी तैयार रहना चाहिए। फिर लखनपुरवालो पर इलजाम रखते हैं, यह इन्सानी फितरत का

१—फितरत--स्वभाव।