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प्रेमाश्रम

खुल्लम-खुल्ला क्यो न करूंँ? आत्मीयता का स्वाँग भरना व्यर्थ है। इन भावो से यह लोग अब हत्थे चढनेवाले नही । सद्भावो का अकुर जो एक क्षण के लिए उनके हृदय में विकसित हुआ था, इन दुप्कामनाओं से झुलस गया। वह विद्या के पास गये तो उसने पूछा, आज सवेरे कहाँ गये थे?

ज्ञानशकर---जरा ज्वालासिंह से मिलने गया था।

विद्या--तुम्हारी ये बाते मुझे अच्छी नहीं लगती।

ज्ञान--कौन-सी बातें ?

विद्या-यही, अपने घर के लोगो की हाकिम से शिकायत करना। भाइयो में खटपट सभी जगह होती है, मगर कोई इस तरह भाई की जड नही काटता।

ज्ञानाकर ने होठ चबा कर कहा, तुमने मुझे इतना कमीना, इतना कपटी समझ लिया है ?

विद्या दृढता से बोली, अच्छा, मेरी कसम खाओ कि तुम इसलिए ज्वालासिंह के पास नही गये थे।

ज्ञानशकर ने कठोर स्वर में कहा, मैं तुम्हारे सामने अपनी सफाई देना आवश्यक नहीं समझता।

यह कह कर ज्ञानशकर चारपाई पर बैठ गये। विद्या ने पते की बात कही थी और इसने उन्हें मर्माहत कर दिया था। उन्हें इस समय विदित हुआ कि सारे घर के लोग, यहाँ तक कि मेरी स्त्री भी मुझे कितना नीच समझती है।

विद्या ने फिर कहा, अरे तो यहाँ कोई दूसरा थोड़े ही बैठा हुआ है, जो सुन लेगा।

ज्ञान--चुप भी रहो, तुम्हारी ऐसी बातो से बदन में आग लग जाती है। मालूम नहीं, तुम्हें कब बात करने की तमीज आयेगी। क्या हुआ, आज भोजन न मिलेगा क्या? दोपहर तो होने को आयीं।।

विद्या--आज तो भोजन बना ही नहीं। तुम्ही नै घर बाँटने के लिए चाचा जी को कोई चिट्ठी लिखी थी। तब से वह बैठे हुए रो रहे हैं।

ज्ञान--उनका रोने को जी चाहता है तो रोयें। हम लोगो को भूखो मारेंगे क्या?

विद्या ने पति को तिरस्कार की दृष्टि से देख कर कहा, घर में जब ऐसा रार मचा हो तो खाने-पीने की इच्छा किसे होती है ? चचा जी को इस दशा मे देख कर किसके घट के नीचे अन्न जायगा। एक तो लड़के पर यह विपत्ति दूसरे घर में यह द्वेष। जब से तुम्हारी चिट्ठी पायी है, मिर नही उठाया। तुम्हे अलग होने की यह धुन क्यो समायी है।

ज्ञान--इसी लिए कि जो थोड़ी बहुत जायदाद बच रही है वह भी इस भाड़ में न जल जाय। पहले घर में छह हजार सालाना की जायदाद थी। अब मुश्किल से दो हजार की रह गयी है। इन लोगों ने सब खा-पीकर बराबर कर दिया।

विद्या--तो यह लोग कोई परायें तो नहीं हैं।

ज्ञान--नुम जब ऐसी बड़ी-बडी बातें करने लगती हो तो मालूम होता है, बन्नासँठ