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प्रेमाश्रम

करता, लज्जा से मुंह छिपाये हुए कि कोई देख न ले साजे कबाब की सुगन्ध से उनके मुँह में पानी भर आता, यहाँ तक कि खाद्याखाद्य का विचार भी न रहता। उस समय केवल एक अव्यक्त शंका, एक मिथ्या संकोच उनके सिलते हुए पैरो को संभाल लिया करता था।

एक दिन लाला जी प्रेमशंकर के पास गये तो उन्होने अपील को फैसला सुनाया। प्रभाशंकर प्रसन्न हो कर बोले- यह बहुत अच्छा हुआ। ईश्वर ने तुम्हारी उद्योग सफल किया। बेचारे निरपराध किसान जेल में पड़े सड़ रहे थे। ईश्वर बड़ा दयालु है। इस आनन्योत्सव में एक दावत होनी चाहिए।

माया बोला- जी हाँ, यही तो अभी मैं कह रहा था। मैं तो अपने स्कूल के सब लड़को को नैवता दूंगा।

प्रेमशंकर—पहले बेचारे आ तो जायें। अभी तो उनके आने में महीनों की देर है, कोई किसी जेल में है, कोई किसी में। जज ने तो पुलिस का पक्ष करना चाहा था, पर डाक्टर इर्फानअली ने उसकी एक न चलने दी।

प्रभा---इन जी का यही हाल है। उनका अभीष्ट सरकार का रोब जमाना होता है, न्याय करना नही। इस मुकदमे में तुमने इतनी दौड़ धूप न की होती तो उन बेचारो की कौन सुनता? ऐसे कितने निरपराधी केवल पुलिस के कौशल तथा वकीलो की दुर्जनता के कारण दंड भोगा करते हैं। मैं तो जब वकीलो को बहस करते देखता हैं तो ऎसा मालूम होता है मानो भाट कवित्त पढ़ रहे हो। न्याय पर किसी पक्ष की दृष्टि नहीं होती। दोनो मौखिक बल से एक दूसरे को परास्त करना चाहते है। जो वाक्य-चतुर है उसी की जीत होती है। आदमियो के जीवन मरण का निर्णय सत्य और न्याय के बल पर नही, न्याय को घोखा देने के बल पर होता है।

प्रेम जब तक मुद्दई और मुद्दालेह अपने-अपने वकील अदालत में लायेंगे तब तक इस दशा में सुधार नहीं हो सकता, क्योकि वकील तो अपने मुवक्किल का मुखपात्र होता है। उसे सत्यासत्य निर्णय से कोई प्रयोजन नही, उसका कर्तव्य केवल अपने मुवक्किल के दावे को सिद्ध करना है। सन्चे न्याय की आशा तो तभी हो सकती है जब वकीलो को अदालत स्वयं नियुक्त करे और अदालत भी राजनीतिक भावों और अन्य दुस्सस्कारों से मुक्त हो। मेरे विचार में गवर्नमेंट को पुलिस में सुयोग्य और सच्चरित्र आदमी छाँट-छाँट कर रखने चाहिए। अभी तक इस विभाग में सच्चरित्रता पर जरा भी ध्यान नहीं दिया गया। वही लोग भर्ती किये जाते है जो जनता को दबा सकें, उन पर रोब जमा सके। न्याय का विचार नहीं किया जाता।

प्रभा–जरा फैसला तो सुनाओ, देखें क्या लिखा है?

प्रेम—हाँ सुनिये, मैं अनुवाद करता हूँ। देखिए, पुलिस की कैसी तीव्र आलोचना की है। यह अभियोग पुलिस के कार्यक्रम का एक उज्ज्वल उदाहरण है। किसी विषय का सत्यासत्य निर्णय करने के लिए आवश्यक है, साक्षियों पर निष्पक्ष भाव से विचार किया जाय और उनके आधार पर कोई धारणा स्थिर की जाय; लेकिन पुलिस के अधि