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प्रेमाश्रम

श्रेणी में कई-कई साल फेल हो जाने के कारण हताश हो गये थे। उन्हें ऐसा मालूम होता था कि हमें विद्या आ ही नहीं सकती। एक बार लाला जी की आलमारी में इद्रजाल की एक पुस्तक मिल गयी थी। दोनों ने उसे बड़े चाव से पढ़ा और उसके मंत्री को जगाने की चेष्टा करने लगे। दोनों अक्सर नदी की ओर चले जाते और साधु सन्तो की बाते सुनते। सिद्धियो की नयी-नयी कथाएँ सुन कर उनके मन में भी कोई सिद्धि प्राप्त करने की प्रबल इच्छा होती है। इस कल्पना से उन्हें एक गर्वयुक्त आनन्द मिलता था कि इन सिद्धियो के बल से हम सब कुछ कर सकते हैं, गडा हुआ घन निकाल सकते है, शत्रुओं पर विजय पा सकते हैं, पिशाचो को वश में कर सकते है। उन्होंने दो-एक लटको का अभ्यास भी किया था और यद्यपि अभी तक उनकी परीक्षा करने का अवसर न मिला था, पर अपनी कृतकार्यता पर उन्हें अटल विश्वास था।

लेकिन जब से गायत्री ने मायाशकर को गोद लिया था, ईर्षा और स्वार्थ से दोनो जल रहे थे। यह् दाह एक क्षण के लिए भी न शान्त होता। जो लडका अभी कल तक उनके साथ का खिलाडी था वह सहसा इतने ऊँचे पद पर पहुँच जाय। दोनो यही सोचा करते कि कोई ऐसी सिद्धि प्राप्त करनी चाहिए कि जिसके सामने घन और वैभव की कोई हस्ती न रहे, जिसके प्रभाव से वे मायाशकर को नीचा दिखा सकें। अन्त में बहुत सोच-विचार के पश्चात् उन्होने भैरव-मन्त्र जगाने का निश्चय किया। एक तन्त्र ग्रन्थ ढूँढ निकाला जिसमे इस क्रिया की विधियाँ विस्तार से लिखी हुई थी। दोनो ने कई दिन तक मन्त्र को कठ किया। उसके मुखाग्र हो जाने पर यह सलाह होने लगी, इसे जगाने का आरम्भ कब से किया जाय ? तेजशकर ने कहा--चलो आज से ही श्रीगणेश कर दें।

पद्म--जब कहो तब । बस, अस्सी घाट की ओर चले।

तेज--चालीसा किसी तरह पूरा हो जाये फिर तो हम अमर हो जायेगे। बन्दूक, तलवार, तोप का हम पर कुछ असर ही न होगा।

पद्म--यार, बडा मजा आयेगा। सैकड़ो वरस तक जीते रहेगे।

तेज--सैकडो ! अभी हजारो क्यो नही कहते ? हिमालय की गुफाओं में ऐसे-ऐसे साधु पड़े हैं जिनकी अवस्थाएँ चार-चार सौ साल से अधिक हैं। उन्होने भी यहीं मन्त्र जगाया होगा। मौत का उन पर कोई वश नहीं चलता।

पद्म--माया बडी शेखी मारा करते हैं। बच्चा एक दिन मर जायेंगे, सब यही रखा रह जायगा। यहाँ कौन चिन्ता है? तोप से भी न डरेंगे।

तेज़--लेकिन मन्त्र जगाना सहज नही है। डरे और काम तमाम हुआ, जरा चौके और वहीं ढेर हो गये । तुमने तो किताब मे पढा ही है, कैसी-कैसी भयकर सूरते दिखायी देती हैं। कैसी-कैसी डरावनी आवाजें सुनायी देती है। भूत-प्रेत, पिशाच नगी तलवार लिए मारने दौड़ते हैं। उस वक्त जरा भी शका न करनी चाहिए।

पद्म--मैं जरा भी न डरूँगा, वह कोई सचमुच के भूत-प्रेत थोड़े न होगे। देवता लोग परीक्षा के लिए डराते होगे।