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प्रेमाश्रम

मुलाजिम को कोई दूसरा काम करने का मजाल नहीं है। अगर हम लोग कोई काम करने लगें तो निकाल दिये जाये।

प्रिय-यह आपकी गलती है। आपको फुर्सत के वक्त कपड़े बुनने या सूत कातने या कपड़े सीने से कोई नहीं रोक सकता। हाँ, सरकारी काम में हर्ज न होना चाहिए। आप लोगो को अपनी हालत हाकिमों से कहनी चाहिए।

मुन्शी-हजूर, कोई सुननेवाला भी तो हो हमारा रिआया को लूटना हुक्काम की निगाह मै इतना बड़ा जुर्म नहीं है, जितना कुछ अर्ज-मारूज करना। फौरन साजिश और गरोह-बन्दी का इलज़ाम लग जाय।

प्रिय- इससे तो यह कही अच्छा होता कि आप लोग कोई हुनर सीख कर आजादी से रोजी कमाते। मामूली कारीगर भी आप लोगो से ज्यादा कमा लेता है।

मुन्शी- हुजूर, यह तकदीर का मुआमला हैं। जिसके मुकद्दर में गुलामी लिखी हो, वह आजाद कैसे हो सकता है।

दोपहर हो गयी थी, प्रियनाथ ने दूसरी खुराक दवा दी। इतने में महाराज ने आ कर कहा- सरकार, रसोई तैयार है, भोजन कर लीजिए। प्रेमशंकर वहाँ से उठना न चाहते थे, लेकिन प्रियनाथ ने उन्हे इत्मीनान दिला कर कहा---चाहे अभी जाहिर न हो, पर पहली खुराक का कुछ न कुछ असर हुआ है। आप देख लीजिएगा शाम तक यह होश-हवास की बाते करने लगेंगे।

दोनों आदमी भोजन करने गये। महाराज ने खूब मसालेदार भोजन बनाया था। दयाशंकर चटपटें भोजन के आदी थे। सब चीजे इतनी कड़वी थी कि प्रेमशंकर दोचार कौर से अधिक न खा सके। आँख और नाक से पानी बहने लगा। प्रियनाथ ने हँस कर कहा- आपकी तो खूब दावत हो गयी। महाराज ने तो मदरासियों को भी मात कर दिया। यह उत्तेजक मसाले पाचन-शक्ति को निर्बल कर देते हैं। देखो महाराज, जब तक दारोगा जी अच्छे न हो जायँ ऐसी चीजें उन्हें न खिलाना, मसाले बिलकुल न डालना।

महाराज-हुजूर, मैंने तो आज बहुत कम मसाले दिये हैं। दारोगा जी के सामने यह भोजन जाता तो कहते यह क्या फीकी-पोच पकायी है ।

प्रेमशंकर ने रूखे चावल खाये, मगर प्रियनाथ ने मिरचा की परवाह नहीं की। दोनो आदमी भोजन करके फिर दयाशंकर के पास आ बैठे। तीन बजे प्रियनाथ ने अपने हाथों से उनकी छाती में एक अर्क की मालिश की और शाम तक दो बार और दवा दी। दयाशंकर अभी तक चुपचाप पड़े हुए थे, पर वह मूर्छा नहीं, नीद थीं। उसकी श्वास-क्रिया स्वाभाविक होती जाती थी और मुख की बिवर्णता मिटती जाती थी। जब अंधेरा हुआ तो प्रियनाथ ने कहा, अब मुझे आज्ञा दीजिए। ईश्वर ने चाहा तो रात भर में इनकी दशा बहुत अच्छी हो जायगी। अब भय की कोई बात नहीं हैं। मैं कल आठ बजे तक फिर आऊँगा। सहसा दयाशंकर जागे, उनकी आँखो में अब वह चंचलता न थी। प्रियनाथ ने पूछा, अब कैसी तबीयत है?