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प्रेमाश्रम

करने लगेंगे। दवा से ज्यादा बाबू प्रेमशंकर की सुश्रूषा का असर है। शायद आप रात को बिलकुल न सोये।

प्रेमशंकर–सोया क्यों नही? हाँ, घौड़े बेच कर नहीं सोया।

प्रभाकर--डाक्टर साहब, मैं गवाही देता हूँ कि रात भर इनकी आँखें नहीं झपकी। मैं कई बार झाँकने आया तो इन्हें बैठे या कुछ पढ़ते पाया।

दयाशंकर ने श्रद्धामय भाव से कहा--जीता बचा तो बाकी उम्र इनकी खिदमत में कटूँगा। इनके साथ रह कर मेरा जीवन सुधर जायगा।

इस भाँति एक हफ्ता गुजर गया। डाक्टर प्रियनाथ रोज आते और घंटे भर ठहर कर देहात की ओर चले जाते। प्रभाशंकर तो दूसरे ही दिन घर चले गये, लेकिन प्रेमशंकर एक दिन के लिए भी न हिले। आठवे दिन दयाशंकर पालकी में बैठ कर घर जाने के योग्य हो गये। उनकी छुट्टी मंजूर हो गयी थी।

प्रातः काल था। दयाशंकर थाने से चले। यद्यपि वह केवल तीन महीने की छुट्टी पर जा रहे थे, पर थाने के कर्मचारियों को ऐसा मालूम हो रहा कि अब इनसे सदा के लिए साथ छूट रहा है। सारा थाना मील भर तक पालकी के साथ दौड़ता हुआ उनके साथ आया। लोग किसी तरह लौटते ही न थे। अन्त में प्रेमशंकर के बहुत दिलासा देने पर लोग विदा हुए। सब के सब फूट-फूट कर रो रहे थे।

प्रेमशंकर मन में पछता रहे थे कि ऐसे सर्वप्रिय श्रद्धेय मनुष्य से में इतने दिनों तक घृणा करता रहा। दुनिया में ऐसे सज्जन, ऐसे दयालु, ऐसे विनयशील पुरुष कितने हैं, जिनकी मुट्ठी में इतने आदमियों के हृदय हो, जिनके वियोग से लोगों को इतना दुख हो।



६१

होली का दिन था। शहर में चारो तरफ अबीर और गुलाल उड़ रही थी, फाग और चौताल की धूम थी, लेकिन लाला प्रभाशंकर के घर पर मातम छाया हुआ था। श्रद्धा अपने कमरे में बैठी हुई गायत्री देवी के गहने और कपड़े सहेज रही थी कि अब की ज्ञानाकर आयें तो यह अमानत सौप दूँ। विद्या के देहान्त और गायत्री के चले जाने के बाद से उसकी तबीयत अकेले बहुत घबराया करती थी। अक्सर दिन कै दिन बड़ी बहू के पास बैठी रहती, पर जब से दोनों लड़को की मृत्यु हुई उसका जी और भी उचटा रहता था। हाँ, कभी-कभी शीलमणि के आ जाने से जरा देर के लिए जी बहल जाता था। गायत्री के मरने की खबर यहाँ कल ही आयी थी। श्रद्धा उसे याद करके सारी रात रोती रही। इस वक्त भी गायत्री उसकी आँखों में फिर रही थी, उसकी मृदु, सरल, निष्कपट बातें याद आ रही थी। कितनी उदार, कितनी नम्र कितनी प्रेममयी रमणी थी। जरा भी अभिमान नही, पर हा शौक! कितना भीषण अन्त हुआ। इसी शोकावस्था में दोनो लड़को की ओर ध्यान जा पहुँचा। हा! दोनो। कैसे हँसमुख, कैसे होनहार, कैसे सुन्दर बालक थे! जिन्दगी का कोई भरोसा नहीं,