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प्रेमाश्रम

निर्वाह कैसे होगा? 'उसे तो बस रुपये की हाय-हाय पड़ी है, चाहे चचा, भाई, भतीजे जीये या मरें। ऐसे आदमी का मुंह देखना पाप है।

प्रभाशंकर---फिर वही बात मुंह से निकालती हो। अगर वह अपना आधा हिस्सा माँगता है तो क्या बुरा करता है? यही तो संसार की प्रथा हो रही है।

बड़ी बहू---तुम्हारी तो बुद्धि मारी गयी है। कहाँ तक कोई समझाये। जैसे कुछ सूझता ही नहीं। हमारे लड़के की जान पर बनी हुई है, घर विघ्वस हुआ जाता है, दाना-पानी हराम हो रहा है, वहाँ आधी रात तक हारमोनियम बजता है। मैं तो उसे काला नाग समझती हूँ, जिसके विष का उतार नहीं। यदि कोई हमारे गले पर छुरी भी चला दे तो उसकी आँखों में आँसू न आये। तुम यहाँ बैठे पछता रहे हो और वह टोले-महल्ले में घूम-घूम तुम्हें बदनाम कर रहा है। सेब तुम्हीं को बुरा कह रहे है।

प्रभा—यह सब तुम्हारी मिथ्या कल्पना है, उसका हृदय इतना क्षुद्र नहीं है।

बड़ी बहू-तुम इसी तरह बैठे स्वर्ग-सपना देखते रहोगे और वह एक दिन सब सम्बन्धियों को बटोर कर बाँट-बखरे की बात छेड़ देगा, फिर कुछ करते-धरते न बनेगा। राय कमलानद से भी पत्र-व्यवहार कर रहा है। मेरी बात मानों, अपने सम्बन्धियों को भी सचेत कर दो। पहले से सजग रहना अच्छा है।

प्रभाशंकर ने गौरवोन्मत्त हो कर कहा, यह हमसे मरते दम तक न होगा। मैं ऐसा निर्लज्ज नहीं हैं कि अपने घर की फूट का ढिंढोरा पीटता फिरूँ? ज्ञानशंकर मुझसे चाहे जो भाव रखे, किन्तु मैं उसे अपना ही समझता हूँ। हम दोनों भाई एक दूसरे के लिए प्राण देते रहे। आज भैया के पीछे मैं इतना बेशर्म हो जाऊँ कि दूसरों से पंचायत कराता फिरूँ? मुझे ज्ञानशंकर से ऐसे द्वेष की आशा नहीं, लेकिन यदि उसके हाथ मेरा अहित भी हो जाय तो मुझे लेशमात्र भी दुख न होगा। अगर भैया पर हमारा बोझ न होता तो उनका जीवन बड़े मुख से व्यतीत हो सकता था। उन्हीं का लड़का है। यदि उसके मुख और संतोष के लिए हमें थोड़ा सा कष्ट भी हो तो हमें बुरा न मानना चाहिए, हमारे सिर उसके ऋण से दबे हुए हैं। मैं छोटी-छोटी बातों के लिए उससे रार मचाना अनुचित समझता हूँ।

बड़ी बहू ने इसका प्रतिवाद न किया, उठ कर वहां से चली गयी। प्रभाशंकर उन्हें और भी लज्जित करना चाहते थे। कुछ देर तक वही बैठे है कि आज आये तो दिल का बुखार निकालें, लेकिन जब देर हुई तो उकता कर बाहर चले गये। वह पहले कितनी ही बार बड़ी बहू से ज्ञानशंकर की शिकायत कर चुके थे। उसके फैशन और ठाट के लिए वह कभी खुशी से रुपये न देते थे, किन्तु जब वह बड़ी बहू या अपने घर के किसी अन्य व्यक्ति को ज्ञानशंकर से विरोध करते देखते, तो उनकी न्याय वृत्ति प्रज्ज्वलित हो जाती थी और वह उमंग में आ कर सज्जनता और उदारता को ऐमी डींग मारने लगते थे, जिसको व्यवहार में लाने का कदाचित् उन्हें कभी साहस न होता।

बाहर आ कर वह आँगन में टहलने लगे और तेजशंकर को यह देखने को भेजा कि ज्ञानशंकर क्या कर रहे हैं। वह उनसे क्षमा मांगना चाहते थे, किन्तु जब उन्हें