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प्रेमाश्रम

और छात्रों के लिए वैसे ही सूट न तैयार हो गये। ज्ञानशंकर मन में बहुत लज्जित हुए और बहुत जत्न करने पर भी उनके मुहँ से इतना निकल ही गया, भाई साहब मैं इस साम्य-सिद्धान्त पर आपसे सहमत नहीं हूँ। यह एक अस्वाभाविक सिद्धान्त है। सिद्धान्त रुप में हम चाहे इसकी कितनी ही प्रशंसा करे पर इसका व्यवहार में लाना असंभव हैं। मैं यूरोप के कितने ही साम्यवादियो को जानता हूँ जो अमीरों की भाँति रहते है, मोटरो पर सैर करते है और साल में छह महीने इटली या फ्रांस में विहार किया करते हैं। जब वह अपने को साम्यवादी कह सकते है तो कोई कारण नहीं है कि हम इस अस्वाभाविक नीति पर जान दे।

प्रेमशंकर ने विनीत भाव से कहा—यहाँ साम्यवाद की तो कभी चर्चा नहीं हुई है।

ज्ञान—तो फिर यहाँ के जलवायु से यह असर होगा। यद्यपि मुझे इस विषय में आपसे कुछ कहने का अधिकार नहीं है पर पिता के नाते में इतना कहने की क्षमा चाहता हूँ कि ऐसी शिक्षा का फल माया के लिए हितकर न होगा।

प्रेम—अगर तुम चाहो और माया की इच्छा हो तो उसे लखनऊ ले जाओ, मुझे कोई आपत्ति नहीं है। यहाँ के जलवायु को बदलना मेरे वश की बात नहीं।

ज्ञान—यह तो आप जानते है कि माया और उसके साथियों की स्थिति में कितना अन्तर हैं।

प्रेमशंकर ने गम्भीरता से कहा—हाँ, खूब जानता हूँ, पर यह नहीं जानता कि इस अन्तर को प्रदर्शित क्यों किया जाय। मायाशंकर थोड़े दिनों में एक बड़ा इलाकेदार होगा, यह सब लड़को को मालूम है। क्या यह बात उन्हें अपने दुर्भाग्य पर रुलाने के लिए काफी नहीं है कि इन विभिन्नता का स्वाँग दिखा कर उन्हें और भी चोट पहुँचायी जाय? तुम्हें मालूम न होगा, पर मैं यह विश्वस्त रूप से कहता हूँ कि तेजू और पनू का बलिदान माया के गोद लिए जाने के ही कारण हुआ। माया को अचानक इस रुप में देख कर सिद्धि प्राप्त करने की प्रेरणा हुई। माया डीगे मार-मार कर उनकी लालसा को और भी उत्तेजित करता रहा और उसका यह भयकर परिणाम हुआ

इतने में माया आ गया और प्रेमशंकर को अपनी बात अधूरी ही छोडनी पड़ी। ज्ञानशंकर भी अन्यमनस्क हो कर वहा से उठ गये।



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गायत्री के आदेशानुसार ज्ञानशंकर २००० रु महीना मायाशंकर के खर्च के लिए देते जाते थे। प्रेमशंकर की इच्छा थी कि कई अध्यापक रखे जायें, सैर करने के लिए गाड़ियां रखी जायें, कई नौकर सेवा-व्हल के लिए लगाये जायें, पर मायाशंकर अपने ऊपर इतना खर्च करने को राजी न हुआ। प्रेमशंकर को मजबूर हो कर उसकी बात माननी पड़ी। केवल दो अध्यापक उसे पढाने आते थे। फारसी पढ़ाने के लिए ईजाद हुसैन और संस्कृत पढ़ाने के लिए एक पडिंत। सवारी के लिए एक घोडा भी था। अँगरेजी प्रेमशंकर स्वयं पढाते थे। गणित ज्वालासिंह के जिम्मे था, डाक्टर प्रियनाथ