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प्रेमाश्रम


माया ने कहा-चाची, तुम नाहक हलाकान होती हो, मैं अभागी हूँ, मुझे रोने दो।

श्रद्धा---तुम चल कर कुछ खा लो। मैं आज ही रात को यह बात छेड़ूँगी।

माया का चित्त बहुत खिन्न था, पर श्रद्धा की बात न टाल सका। दो-चार कौर खाये, पर ऐसा मालूम होता था कि कौर मुंह से निकला पड़ता है। हाथ-मुँह धो कर फिर अपने कमरे में लेट रहा।

सारी रात श्रद्धा यही सोचती रही कि इन्हें कैसे समझाऊँ। शीलमणि से भी सलाह ली, पर कोई युक्ति न सूझी।।

प्रात काल बुधिया किसी काम से आयी। बातो-बातो मे कहने लगी—बहू जी, पैसा सब कोई देखता है, मेहनत कोई नहीं देखता। मर्द दिन भर में एक-दो रुपया कमी लाता है तो मिजाज ही नहीं मिलता, औरत बेचारी रात-दिन चूल्हे-चक्की मे जुती रहे, फिर भी वह निकम्मी ही समझी जाती हैं।

श्रद्धा सहसा उछल पड़ी। जैसे सुलगती हुई आग हवा पा कर भभक उठती है। उसी भाँति इन बातों ने उसे एक युक्ति सुझा दी। भटकते हुए पथिक को रास्ता मिल गया। कोई चीज जिसे घंटों से तलाश करते-करते थक गयी थी, अचानक मिल गयी। ज्यो ही बुधिया गयी, वह प्रेमशंकर के पास आ कर बोली- चाचा जी को रुपये देने के बारे में क्या निश्चय किया?

प्रेम–फिक्र में हैं। दो चार दिन में कोई सूरत निकल ही आयेगी।

श्रद्धा–रुपये तो रखे ही है।

प्रेम-मुझे खर्च करने का अधिकार नहीं है।

श्रद्धा- यह किसके रुपये है।

प्रेम--(विस्मित होकर) माया के शिक्षार्थ दिये गये है।

श्रद्धा तो क्या २००० रु० महीने खर्च नहीं होते हैं?

प्रेम-क्या तुम जानती नहीं? लगभग ८०० रु० खर्च होते है, बाकी १२०० रु० बच रहते हैं।

श्रद्धा—यह क्यों बचे रहते है? क्या यह तुम्हारी समझ में नही आता? डाक्टर इर्फानअली को पढ़ाने के लिए कितना वेतन मिलना चाहिए ?डाक्टर प्रियनाथ और बाबू ज्वालासिंह को भी नौकर रखते तो कुछ न कुछ देना पड़ता। तुम्हारी मजूरी भी कुछ न कुछ होनी ही चाहिए। तुम्हारे विचार में इर्फानअली का वेतन कुछ होता ही नहीं? उनका एक दिन का मेहनताना ५०० रु० न दोगे? प्रियनाथ की आमदनी १०० रु० प्रति दिन से कम नहीं थी। पहले तो वह किसी के घर पढ़ाने जाये ही नहीं, जाये तो ५०० रु महीने से कम न लें। बाबू ज्वालासिंह भी १०० रु० पर महँगे नहीं हैं। रहे तुम तुम्हारा भतीजा है, उसे शौक से, प्रेम से पढ़ाते हो, पर दूसरो को क्या पड़ी है कि वह सेत में अपनी सिरपच्ची करें? इन रुपयो को तुम बचत समझते हो, यह सर्वथा अन्याय है। इसे चाहे अपनी सज्जनता का पुरस्कार समझो या उनके एहसान का मूल्य, इस धन के खर्च करने का उन्हे अधिकार है।