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प्रेमाश्रम

इच्छा हुई कि कल्पित नाम से इस लेख का उत्तर दें, लेकिन कुछ तो अवकाश न मिला, कुछ चित्त की दशा अनिश्चित रहीं, न लिख सके। बारहवें दिन उन्होंने पत्र खोला तो मायाशंकर का लेख नजर आया। आद्योपान्त पढ़ गये। हृदय में एक गौरवपूर्ण उल्लास का आवेग हुआ। तुरन्त श्रद्धा के पास गये और लेख पढ़ सुनाया। फिर इर्फानअली के पास गये। उन्होंने पूछा---कोई खबर है क्या?

प्रेम---आपने देखा नहीं, माय ने दीपकसिंह के पत्र का कैसा युक्तिपूर्ण उत्तर दिया है।

इफन-जी हाँ, देखा। मैं तो आपसे पूछने आ रहा था कि यह माया ने ही। लिखा है या आपने कुछ मदद की है?

प्रेम-मुझे तो खबर भी नहीं, उसी ने लिखा होगा।

इन–तो उसको मुबारकबाद देनी चाहिए, बुलाऊँ!

प्रेम-जी नहीं। उसके इस जोश को दबाने की जरूरत है। ज्ञानशंकर यह लेख देख कर रोयेंगे। सारा इलज़ाम मेरे अपर आयेगा। कहेंगे कि आपने लड़के को बहका दिया, पर मैं आपको यकीन दिलाता हूँ कि मैंने उसे यह पत्र लिखने के लिए इशारा तक नहीं किया। इसी बदनामी के डर से मैंने खुद नही लिखी।

इर्फान- आप यह इल्जाम मेरे सिर पर रख दीजिएगा। मैं बड़ी स्तुची से इसे ले लूँगा।

प्रेम–कल उनका कोप-पत्र आ जायगा। माया ने मेरे साथ अच्छा सलूक नहीं किया!

इर्फान---भाभी साहिबा का क्या ख्याल है?

प्रेम-उनकी कुछ न पूछिए। वह तो इस खुशी में दावत करना चाहती है।

प्रेमशंकर का अनुमान अक्षरश सत्य निकला तीसरे दिन ज्ञानशकर का कोप-पत्र आ पहुँचा। आशय भी यही था--मुझे आपसे ऐसी आशा न थी। साम्यवाद के पाठ पढ़ा कर अपने सरल बालक पर घोर अत्याचार किया है। उसका अठारहवाँ वर्ष पूरा हो रहा है। उसे शीघ्र ही अपने इलाके का शासनाधिकार मिलनेवाली हैं। मैं इस महीने के अन्त तक इन्ही तैयारियों के लिए आनेवाला हूँ। हिज़ एक्सलेन्सी गवर्नर महोदय स्वय राज्य तिलक देने के लिए पधारने वाले हैं। उस मृदु संगीत को इस बेसुरै राग ने चौपट कर दिया। आपको अपने प्रजावाद का बीज किसी और खेत में बोना चाहिए था। आपने अपने शिक्षाधिकार का खेदजनक दुरुपयोग किया है। अब मुझपर दया कर माया को मेरे पास भेज दीजिए। मैं नहीं चाहता कि अब वह एक क्षण भी वहाँ और रहे। अभिषेक तक मैं उसे अपने साथ रखूँगा। मुझे भय है कि वहाँ रह कर वह कोई और उपद्रव न कर बैठे. अस्तु।

सन्ध्या की गाड़ी से मायाशंकर ने लखनऊ को प्रस्थान किया।