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प्रेमाश्रम

से रोक नहीं सकता को मेरे अनुभव के फल हैं और जिन्हें कार्यरूप में लाने का मुझे सुअवसर मिला है। मेरी धारणा है कि मुझे किसानो की गर्दन पर अपनी जुआ रखने का कोई अधिकार नहीं है। यह मेरी नैतिक दुर्बलता और भीरुता होगी, अगर मैं अपने सिद्धांत का भोग-लिप्सा पर बलिदान कर दें। अपनी ही दृष्टि में पतित हो कर कौन जीना पसन्द करेगा? मैं आप सब सज्जनी के सम्मुख उन अधिकारी और स्वत्वो को त्याग करता हूँ जो प्रथा, नियम और समाज-व्यवस्था ने मुझे दिये हैं। मैं अपनी प्रजा को अपने अधिकारों के बन्धन से मुक्त करता हूँ। वह न मेरे असामी हैं, न मैं उनको ताल्लुकेदार हैं। वह सब सज्जन मेरे मित्र है। मेरे भाई है, आज से वह अपनी जोत के स्वयं जमींदार है। अब उन्हें मेरे कारिन्दों के अन्याय और मेरी स्वार्थ भक्ति की यन्त्रणाएँ न सहनी पड़ेगी। वह इजाफे, एखराज, बेगार की विडम्बनाओं से निवृत्त हो गये। यह न समझिए कि मैंने किसी आवेग के वशीभूत हो कर यह निश्चय किया है। नहीं, मैंने उसी समय यह संकल्प किया जब अपने इलाको का दौरा पूरा कर चुका। आपको मुक्त करके मैं स्वयं मुक्त हो गया। अब मैं अपना स्वामी हैं, मेरी आत्मा स्वच्छन्द है। अब मुझे किसी के सामने घुटने टेकने की जरूरत नहीं। इस दलाली की बदौलत मुझे अपनी आत्मा पर कितने अन्याय करने पड़ते, इसका मुझे कुछ थोड़ा अनुभव हो चुका है। मैं ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ कि उसने मुझे इस आत्म-पतन से बचा लिया। मेरा अपने समस्त भाइयों से निवेदन है कि वह एक महीने के अन्दर मेरे मुखतार के पास जा कर अपने अपने हिस्से का सरकारी लगान पूछ ले और वह रकम खजाने में जमा कर दे। मैं श्रद्धेय डाक्टर इर्फानअली से प्रार्थना करता हूँ कि वह इस विषय में मेरी सहायता करे और जाब्ते और कानून की जटिल समस्याओं को हल करने की व्यवस्था करें। मुझे आशा है कि मेरा समस्त भ्रातृवर्ग आपस में प्रेम से रहेगा और जरा-जरा सी बातो के लिए अदालत की शरण न लेंगे। परमात्मा आपके हृदय मे सहिष्णुता, सद्भाव और सुविचार उत्पन्न करे और आपको अपने नये कर्तव्यो का पालन करने की क्षमता प्रदान करें। हाँ, मैं यह जता देना चाहता हूँ कि आप अपनी जमीन असामियों को नफे पर न उठा सकेंगे। यदि आप ऐसा करेगे तो मेरे। साथ घोर अन्याय होगा, क्योंकि जिन बुराइयों को मिटाना चाहता हूँ, आप उन्ही का प्रचार करेंगे। आपको प्रतिज्ञा करनी पड़ेगी कि आप किसी दशा में भी इस व्यवहार से लाभ न उठायेगे, असामियों से नफा लेना हराम समझेंगे।

मायाशंकर ज्यो ही अपना कथन समाप्त करके अपनी जगह बैठा कि हजारो आदमी चारो तरफ से आ-आ कर उसके इर्द-गिर्द जमा हो गये। कोई उसके पैरों पर गिरा पड़ता था, कोई रोता था, कोई दुआएं देता था, कोई आनन्द से विह्वल हो कर उछल रहा था। आज उन्हें वह अमूल्य वस्तु मिल गयी थी जिसकी वह स्वप्न में भी कल्पना ने कर सकते थे। दीन किसान को जमींदार बनने का हौसला कहाँ? सैकडो आदमी गवर्नर महोदय के पैरों पर गिर पड़े, कितने ही लोग बाबू ज्ञानशंकर के पैरो से लिपट गये। शामियाने में हलचल मच गयी। लोग आपस में एक-दूसरे से गले मिलते थे।