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प्रेमाश्रम


पर खड़ा भी न होने पाता था, वहां अब अभ्यागतो का उदारतापूर्ण सत्कार किया जाता था। कभी-कभी वस्त्रदान भी होता। लोक-सिद्धि ने परलोक बनाने की सदिच्छा उत्पन्न कर दी थी।

अब खां साहब को विदित हुआ कि इस इलाके को विद्रोही समझने मे मेरी भूल थी। ऐमा विरला ही कोई असामी था जिसने उनकी चौखट पर मस्तक न नवाया हो। गांव में दस-बारह घर ठाकुरों के थे। उनमें लगान बड़ी कठिनाई से वसूल होता था। किन्तु इजाफा लगाने की खबर पाते ही वह भी दब गये। डपटसिंह उनके नेता थे। वह दिन में दम-पांच बार खाँ साहब को सलाम करने आया करते थे। दुखरन भगत शिव जी को जल चढ़ाने जाते समय पहले चौपाल का दर्शन करना अपना परम कर्तव्य समझते थे। बस, अब समस्त इलाके में कोई विद्रोही था तो मनोहर था और कोई उसका वधु था तो कादिर। वह खेत से लौटता तो कादिर के घर जा बैठता और अपने दिनों को रोता। इन दोनो मनुष्यों को साथ बैठे देख कर सुक्खू चौधरी की छाती पर सांप लोटने लगता था। वह यह जानना चाहते थे कि इन दोनों मे क्या बातें हुआ करती हैं। अवश्य दोनों मेरी ही बुराई करते होगे। उन्हें देखते ही दोनों चुप हो जाते थे, इमसे चौधरी के संदेह की और भी पुष्टि हो जाती थी। खाँ साहब ने कादिर का नाम शैतान रख छोड़ा था और मनोहर को काला नाग कहा करते थे। काले नाग का तो उन्हें बहुत भय नहीं था, क्योंकि एक चोट से उसका काम तमाम कर सकते थे, मगर शैतान से डरते थे। क्योंकि उस पर चोट करना दुस्तर था। उम जवार मे कादिर का बड़ा मान था। वह बड़ा नीतिकुशल, उदार और दयालु था। इसके अतिरिक्त उसे जड़ी-बूटियों का अच्छा ज्ञान था। यहां हकीम, वैद्य, डाक्टर जो कुछ था वही था। रोग-निदान मे भी उसे पूर्ण अभ्यास था। इससे जनता की उसमें विशेष श्रद्धा थी। एक बार लाला जटाशंकर कठिन नेत्र रोग से पीड़ित थे। बहुत प्रयत्न किये, पर कुछ लाभ न हुआ, कादिर की जड़ी-बूटियों ने एक ही सप्ताह में इस असाध्य रोग का निवारण कर दिया। खाँ साहब को भी एक बार कादिर के ही नुस्खे ने प्लेग से बचा लिया था। खाँ साहब इस उपकार से तो नहीं, पर कादिर को सर्वप्रियता से मगन रहते थे। वह सदैव इसी उधेड़-बुन में रहते थे कि इस शैतान को कैसे पजे में लाऊँ।

किन्तु कादिर निश्चित और निश्शक अपने काम में लगा रहता था। उसे एक क्षण के लिए भी यह भय न होता था कि गांव के जमींदार और कारिन्दा मेरे शत्रु हो रहे हैं और उनकी शत्रुता मेरा सर्वनाश कर सकती है। यदि इस समय भी दैवयोग से खाँ साहब बीमार पड़ जाते, तो वह उनका इशारा पाते ही तुरंत उनके उपचार और सेवाशुश्रूषा में दत्तचित हो जाता। उसके हृदय में राग और द्वेष के लिए स्थान न था और न इस बात की ही परवाह थी कि मेरे विषय में कैसे-कैसे मिथ्यालाप हो रहे हैं! वह गांव में विद्रोहाग्नि भड़का सकता था, खाँ साहब और उनके सिपाहियों की खबर ले सकता था। गाँव में ऐसे कई उद्दंड नवयुवक थे, जो इस अनिष्ट के लिए आतुर