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प्रेमाश्रम


थे किन्तु कादिर उन्हें संभाले रहता था। दीनरक्षा उसका लक्ष्य था, किन्तु क्रोध और द्वेष को उभार कर नहीं, वरन् सद्व्यवहार तथा सत्य प्रेरणा से।

मनोहर की दशा इनके प्रतिकूल थी। जिस दिन से वह ज्ञानशंकर की कठोर बातें सुन कर लौटा था, उसी दिन से विकृत भावनाएँ उनके हृदय और मस्तिष्क में गूंजती रहती थी। एक दीन मर्माहत पक्षी था, जो घावों से तड़प रहा था। वह अपशब्द उसे एक क्षण भी न भूलते थे। वह ईट का जवाब पत्थर से देना चाहता था। वह जानता था कि सबलों से बैर बढ़ाने से मेरा ही सर्वनाश होगा, किन्तु इस समय उसकी अवस्था उस मनुष्य की-सी हो रही थी, जिसके झोपड़े में आग लगी हो और वह उसके बुझाने में असमर्थ हो कर शेष भागों में भी आग लगा दे कि किसी प्रकार इस विपत्ति का अंत हो। रोगी अपने रोग को असाध्य देखता है, तो पथ्यापथ्य की बेड़ियों को तोड़ कर मृत्यु की ओर दौड़ता है। मनोहर चौपाल के मामने से निकलता तो अकड़ कर चलने लगता। अपनी चारपाई पर बैठे हुए कभी खाँ साहब या गिरधर महाराज को आते देखता, तो उठ कर सलाम करने के बदले पैर फैलाकर लेट जाता। सावन में उसके पेड़ों के आम पके, उसने सब आम तोड़ कर घर में रख लिये, जमींदार का चिरकाल से बंधा हुआ चतुर्थाश न दिया और जब गिरधर महाराज मांगने आये तो उन्हें दुत्कार दिया। वह सिद्ध करना चाहता था कि मुझे तुम्हारी धमकियों को जरा भी परवाह नहीं है। कभी-कभी नौ-दस बजे रात तक उसके द्वार पर गाना होता, जिसका अभिप्राय केवल खाँ साहब और नुक्खू चौधरी को जलाना था। बलराज को अब वह स्वेच्छाचार प्राप्त हो गया, जिसके लिए पहले उसे झिड़कियां खानी पड़ती थी। उसके रंगीले सहचरी का यहाँ खूब आदर-सत्कार होता, भंग छनती, लकड़ी के खेल होते, लावनी और ख्याल की ताने उड़ती, डफली बजती। मनोहर जवानी के जोश के साथ इन जमघटो में सम्मिलित होता। ये ही दोनों पक्षों के विचार विनिमय के माध्यम थे। खाँ साहब को एक-एक बात की सूचना यहाँ हो जाती थी। यहाँ का एक-एक शब्द वहाँ पहुँच जाता था। यह गुप्त चाले आग पर तेल छिड़कती रहती थी। खाँ साहब ने एक दिन कहा, आजकल तो उधर खूब गुलछरें उड़ रहे हैं, बेदखली का सम्मन पहुंचेगा तो होश ठिकाने हो जायगा। मनोहर ने उत्तर दिया, बेदखली की धमकी दूसरों को दे, यहाँ हमारे खेत के मेड़ों पर कोई आया तो उसके बाल-बच्चे उसके नाम को रोयेंगे।

एक दिन संध्या समय, मनोहर द्वार पर बैठा हुआ बैलों के लिए कड़वी छांट रहा था और बलराज अपनी लाठी में तेल लगाता था कि ठाकुर डपटसिंह आ कर माचे पर बैठ गये और बोले, सुनते है डिप्टी ज्वालासिंह हमारे बाबू साहब के पुराने दोस्त हैं। छोटे सरकार के लड़के थानेदार थे, उनका मुकद्दमा उन्हीं के इजलास में था। वह आज बरी हो गये।

मनोहर-रिसवत तो साबित हो गयी थी न?

डपटसिंह-हाँ साबित हो गयी थी। किसी को उनके बरी होने की आशा न थी।