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प्रेमाश्रम


पर बाबू ज्ञानशंकर ने ऐसी सिफारिस पहुंचायी कि डिप्टी साहब को मुकदमा खारिज करना पड़ा।

मनोहर-हमारे परगने का हाकिम भी तो वही डिप्टी है।

डपट-हां, इसी की तो चिन्ता है। इजाफा लगान का मामला उसी के इजलास मे जायगा और ज्ञान बाबू अपना पूरा जोर लगायेंगे।

मनोहर-तब क्या करना होगा?

डपट-कुछ समझ में नहीं आता।

मनोहर-ऐसा कोई कानून नहीं बन जाता कि बेसी का मामला इन हाकिमों के इजलास मे न पेश हुआ करे। हाकिम लोग भी तो ज़मीदार होते है, इसलिए वह जमीदारों का पक्ष करते है। सुनते है, लाट साहब के यहाँ कोई पंचायत होती है। यह बातें उस पंचायत में कोई नहीं कहता?

डपट-वहाँ भी तो सब जमींदार ही होते हैं, काश्तकारों की फरयाद कौन करेगा। मनोहर-हमने तो ठान लिया है कि एक कौड़ी भी बेसी न देंगे। बलराज ने लाठी कधे पर रख कर कहा, कौन इजाफा करेगा, सिर तोड़ के रख दूंगा।

मनोहर-तू क्यों बीच में बोलता है? तुझसे तो हम नहीं पूछते। यह तो न होगा कि सांझ हो गयी है, लाओ भैस दुह लूँ, बैल की नाद में पानी डाल दूं। बे बात की बात बकता है। (ठाकुर से) यह लौंडा घर का रत्ती भर काम नहीं करता, बस खाने भर का घर से नाता है, मटरगस किया करता है।

डपट-मुझसे क्या कहते हो, मेरे यहाँ तो तीन-चीन मूसलचद हैं।

मनोहर-मैं तो एक कौड़ी बेसी न दूंगा, और न खेत ही छोड़ेंगा। खेतो के साथ जान भी जायगी और दो-चार को साथ ले कर जायगी।

बलराज-किसी ने हमारे खेतों की ओर आंख भी उठायी तो कुशल नहीं।

मनोहर-फिर बीच में बोला?

बलराज क्यों न बोलू, तुम तो दो-चार दिन के मेहमान हो, जो कुछ पड़ेगी वह तो हमारे ही सिर पड़ेगी। जमींदार कोई बादशाह नहीं है कि चाहे जितनी जबरदस्ती करे और हम मुंह न खोले। इस जमाने में वो बादशाहों का भी इतना अख्तियार नहीं, जमींदार किस गिनती में है। कचहरी-दरबार में कही सुनायी नहीं है तो (लाठी दिखला कर) यह तो कहीं नहीं गयी है।

डपट-कही खाँ साहब यह बातें सुन ले तो गजब हो जाय।

बलराज-तुम खाँ साहब से डरो, यहाँ उनके दबैल नहीं है। खेत मे चाहे कुछ उपज हो या न हो, वैसी होती चली जाय, ऐसा क्या अंधेर है? सरकार के घर कुछ तो न्याय होगा, किस बात पर बेसी मंजूर करेगी।

डपट-अनाज का भाव नहीं चढ़ गया है?

बलराज-भाव चढ़ गया है तो मजदूरों की मजदूरी भी तो चढ़ गयी है, बैलों का