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प्रेमाश्रम


दाम भी तो चढ़ गया है, लोहे-लक्कड़ को दाम भी तो चढ़ गया है, यह किस के घर से आयेगा?

इतने में तो कादिर मियाँ घास को गर सिर पर रखे हुए आकर खड़े हो गये। बलराज की बातें सुनीं तो मुस्कराकर बोले, भाँग का दाम भी तो चढ़ गया है। चरस भी महँगी हो गयी है, कत्था-सुपारी भी तो दूने दामों बिकती हैं, इसे क्यों छोड़े जाते हो,

मनोहर-हाँ, कादिर दादा, तुमने हमारे मन की कही।

बलराज- तो क्या अपनी जवानी में तुम लोगों ने बूटी-भाँग न पी होगी?

सदी इसी तरह एक जून चबेना और दूसरी जून रोटी-साग खा कर दिन काटें हैं? और फिर तुम जमींदार के गुलाम बने रहो तो उस जमाने में और कर ही क्या सकते थे? न अपने खेत में काम करते, किसी दूसरे के खेत में मजूरी करते। अब तो शहरों में मजूरों की माँग है, रुपया रोज खाने को मिलता है, रहने को पक्का घर अलग। अब हम जमींदारों की धौंस क्यों सहें, क्यों भर पेट खाने को तरसे?

कादिर--क्यों मनोहर, क्या खाने को नहीं देते?

बलराज---यह भी कोई खाना है कि एक आदमी खाय और घर के सव आदमी उपास करें? गाँव में सुक्खू चौधरी को छोड़ कर और किसी के घर दोनों बेला चूल्हा जलता है? किसी को एक जून चबेना मिलता है, कोई चुटकी भर सत्तू फाँक कर रह जाता है। दूसरी बेला भी पेट भर रोटी नहीं मिलती।

कादिर--भाई, बलराज बात तो सच्ची कहता है। इस खेती में कुछ रह नहीं गया, मजदूरी भी नहीं पड़ती। अब मेरे ही घर देखो, कुल छोटे-बड़े मिलाकर दस बादमी हैं, पाँच-पाँच रुपये भी कमाते तो छह सौ रुपये साल भर के होते। खा-पी कर पचास रुपये बच ही रहते। लेकिन इस खेती में रात-दिन लगे रहते हैं, फिर भी किसी को भर पेट दाना नहीं मिलता।

डपट बस, एक मरजाद रह गयी हैं, दूसरे की मजूरी नहीं करते बनती। इसी बहाने से किसी तरह निबाह हो जाता हैं। नहीं तो बलराज की उसिर में हम लोग खेत के डाँढ़ पर न जाते थे। न जाने क्या हुआ कि जमीन की वरक्कत ही उठ गयी। जहाँ बीघा पीछे बीस-बीस मन होते थे, वहाँ अब चार-पाँच मन से आगे नहीं जाता।

मनोहर-सरकार को यह हाल मालूम होता तो जरूर कास्तकारों पर निगाह करती।

कादिर---मालूम क्यों नहीं है? रत्ती-रत्ती का पता लगा लेती है।

डपट----(हँसकर) बलराज से कहो, सरकार के दरबार में हम लोगों की ओर से फरियाद कर आये।

बलराज---तुम लोग तो ऐसी हँसी उड़ाते हो, मानो कास्तकार कुछ होता ही नहीं। वह जमींदार की वेगार ही भरने के लिए बनाया गया है; लेकिन मेरे पास जो पत्र आता है, उसमें लिला है कि रूस देश में कास्तकारों का राज है, वह जो चाहते हैं। करते हैं। उसी के पास कोई और देशं वलगारी है। वहाँ अभी हाल की बात है,