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प्रेमाश्रम


बटोही-ऐसा हो जाय तो क्या पूछना। है कोई आदमी?

मनोहर आदमी बहुत है, कोई न कोई चला आयगा।

कादिर-तुम्हारा हलवाहा तो खाली है, उसे भेज दो।

मनोहर-हुलवाहे से बैल सधे न सधे, मैं ही चला जाऊँगा।

कादिर-तुम्हारे अपर मुझे विश्वास नहीं आता। कही झगड़ा कर बैठे तो और बन जाय। दुखरन भगत, तुम चले आओ तो अच्छा हो।

दुखरन ने नाक सिकोड़ कर कहा, मुझे तो जानते हो, रात को कहीं नहीं जाता। भजन-भाव की यही बेला है।

कादिर---चला तो मैं जाता, लेकिन मेरा मन कहता है कि बूढ़ी को अच्छा करने का जस मुझी को मिलेगा। कौन जाने अल्लाह को यही मंजूर हो। मैं उन्हें अपने घर लिए जाता हूँ। जो कुछ बन पड़ेगा करूंगा। माली हसनू से हँकवाये देता हूँ। बैलो को चारा-पानी देना है, बलराज को थोड़ी देर के लिए भेज देना।

कादिर के बरौठे में वृद्धा की चारपाई पड़ गयी। कादिर का लड़का हसनू गाठी हाँकने के लिए पड़ाव की तरफ चला। इतने मे सुक्खू चौधरी और गौस खाँ दो चपरासियों के साथ आते दिखायी दिये। दूसरी ओर से बलराज भी आ कर खड़ा हो गया।

गौस खाँ ने कहा, सब लोग यहाँ के गलथौड़ कर रहे हो, कुछ लश्कर की भी खबर है? देखो, यही चपरासी लोग दूध के लिए आये हैं, उसका बदोबस्त करो।

कादिर-कितना दूध चाहिए?

एक चपरासी–कम से कम दस सैर।

कादिर-दस सेर। इतना दूध तो चाहे गाँव भर में न निकले। दो ही चार आदमियों के पास तो भैसें है और वह भी दुधार नहीं है। मेरे यहाँ तो दोनों जून में सैर भर से ज्यादा नहीं होता।

चपरासी–भैसे हमारे सामने लाओ, दूध तो हमारा चपरास निकालता है। हम पत्थर से दूध निकाल लें। चोरों के पैट की बात तक निकाल लेते है, भैसें तो फिर भैसे है। इस चपरासी में वह जादू है, किं चाहे तो जंगल में मंगल कर दें। लाओ, भैसे यहां खड़ी करो।

गौस खाँ---इतने तूल-कलाम की क्या जरूरत है? दूध का इंतजाम हो जायेगा। दो सेर सुक्खू देने को कहते हैं। कादिर के यहाँ दो सेर मिल ही जायगा, दुखरन भगत। दो सेर देंगे, मनोहर और डपटसिंह भी दो-दो सेर दे देंगे। बस हो गया।

कादिर-मैं दो-चार सेर का बीमा नहीं लेता। यह दोनों भैसे खड़ी हैं। जितना दूध दें दें उतना ले लिया जाय।

दुखरन--मेरी तो दोनों भैसे गाभिन है। बहुत देंगी तो आधा सेर। पुवाल तो खाने को पाती हैं और वह भी आधा पेट। कही चराई है नहीं, दूध कहाँ से हो?

डपटसिंह-सुक्खू चौधरी जितना देते हैं, उसको आधा मुझसे ले लीजिए। हैसियत के हिसाब से न लीजिएगा।