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प्रेमाश्रम


शिकायत करने की धमकी देते है, मैं आप ही उनके पास जाता हैं। इन लोगों को उन्होंने कभी ऐसा नादिरशाही हुक्म न दिया होगा कि जा कर गाँव मे आग लगा दी। और मान लें कि वह ऐसा कड़ा हुक्म दे भी दे, तो इन लोगों को तो सोचना चाहिए कि गरीब किसान भी हमारे भाई बन्द है, इन्हें व्यर्थ न सताये। लेकिन इन लोगों को तो पैसे के लोभ और चपरास के मद ने ऐसा अन्धा बना दिया है कि कुछ सूक्षता ही नहीं। आज उस बेचारी बुढ़िया का क्या हाल होगा, मरेगी कि जियेगी। नौकरी तो की है। पाँच रुपये की, काम है बस्ते ढोना, मेज साफ करना, साहब के पीछे-पीछे खिदमतगारों की तरह चलना और बनते है रईस'

मनोहर-तू चुप होगा कि नहीं?

एक चपरासी–नहीं, इसे खूब गालियाँ दे लेने दो, जिसमे इसके दिल की हवस निकल जाय। इसका मजा कल मिलेगा। खाँ साहब, आपने सुना है, आपको गवाही देनी पड़ेगी। आपका इतना मुलाहिजा बहुत किया। लाइए, दूध का कुछ इतजाम करते है कि हम लोग जायें?

गौस खाँ–नहीं जी, दुध लो, और दस सेर से ज्यादा। यह लोग झख मारेंगे। क्या बताये आज इस छोकड़े की बदौलत हमको तुम लोगों के सामने इतना शर्मिंदा होना पड़ा। इस गाँव की कुछ हवा ही बिगड़ी हुई है। मैं खूब समझता हूँ। यह लोग जो भीगी बिल्ली बने बैठे हुए हैं, इन्हीं के शह देने से लौड़े को इतनी जुर्रत हुई है, नहीं तो इसकी मजाल थी कि यो टर्राता। बछड़ा खूँटे के ही बल कूदता है। खैर, अगर मेरा नाम गौस खाँ है तो एक-एक से समझूँगा।

इस तिरस्कार को आशातीत प्रभाव हुआ। सब दहल उठे। वह अविनयशीलता, जो पहले सब के चेहरे से झलक रहीं थी, लुप्त हो गयी। मनोहर तो ऐसा सिटपिटा गयी, मानों सैकड़ो जूते पड़े हो। इस खटाई ने सबके नशे उतार दिये।

कादिर खाँ बोले--मनोहर, जाओ, जितना दूध है सब यह भेज दो।

गौस खाँ-हमको मनोहर के दूध की जरूरत नहीं है।

बलराज--यहाँ देता ही कौन है?

मनोहर खिसिया गया। उठ खड़ा हुआ और बोला, अच्छा ले अब तू ही बोल, जो तेरे जी में आये कर, मैं जाता हूँ। अपना घर-द्वार संभाल, मेरा निबाह तेरे साथ न होगा। चाहे घर को रख, चाहे आग लगा दे।

यह कह कर वह सशंक क्रोध से भरा हुआ वहाँ से चल दिया। बलराज भी धीरे-धीरे अपने अखाड़े की ओर चला। वहीं इस समय सन्नाटा था। मुगदर की जोड़ी रखी हुई थी। एक पत्थर की नाल जमीन पर पड़ी हुई थी, और लेजिम आम की डाल से लटक रहा था। बलराज ने कपड़े उतारे और लँगोट कस कर अखाड़े में उत्तरा, लेकिन आज व्यायाम में उसका मन न लगा। चपरासियों की बात एक फोड़े की भाँति उसके हृदय में टीस रही थी। यद्यपि उसने चपरासियों को निर्भय हो कर उत्तर दिया था, लेकिन उसे इसमे तनिक भी संदेह न था कि गाँव के अन्य पुरुषों को, यहाँ तक कि मेरे