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प्रेमाश्रम

पिता को भी, मेरी बातें उद्दड़ प्रतीत हुई। सब के सब कैसा सन्नाटा खीचे बैठे रहे। मालूम होता था किसी के मुंह में जीभ ही नहीं है। तभी तो यह दुर्गति हो रही है। अगर कुछ दम हो तो आज इतने पीनै-कुचले क्यों जाते है और तो और, दादा ने भी मुझी को डाँटा। न जाने इनके मन में इतना डर क्यों समा गया है। पहले तो ये इतने कायर न थे। कदाचित् अब मेरी चिन्ता इन्हे सताने लगी। लेकिन मुझे अवसर मिला तो स्पष्ट कह दूंगा कि तुम मेरी और से निश्चित रहो। मुझे परमात्मा ने हाथ-पैर दिये है। मिहनत कर सकता हूँ और दो को खिलीकर खा सकता हूँ। तुम्हें अगर अपने खेत इतने प्यारे है कि उनके पीछे तुम अत्याचार और अपमान सहने पर तैयार हो तो शौक से सहो, लेकिन मैं ऐसे खेत पर लात मारता हूँ। अपने पसीने की रोटी खाऊँगा और अकड़ कर चलूंगा। अगर कोई आँख दिखायेगा तो उसकी आँख निकाल लूँगा। यह बुड्ढा गौस खाँ कैसी लाल-पीली आँख कर रहा था, मालूम होता है। इनकी मृत्यु मेरे ही हाथों लिखी हुई है। मुझपर दो चोट कर चुके हैं। अब देखता हैं कौन हाथ निकालते हैं। इनका क्रोध मुझ पर उतरेगा। कोई चिन्ता नहीं, देखा जायगा। दोनों चपरासी मन में फूले न समाये होंगे कि सारा गाँव कैसा रोब में आ गया, पानी भरने को तैयार है। गांव वालों ने भी लल्लो-चप्पों की होगी। कोई परवाह नहीं। चपरासी मेरा कर ही क्या सकते हैं लेकिन मुझे कल प्रात काल डिप्टी साहब के पास जा कर उनसे सब हाल कह देना चाहिए। विद्वान पुरुष है। दीन जनों पर उन्हें अवश्य दया आयेगी। अगर वह गाड़ीयों के पकड़ने की मनाही कर दे तो क्या पूछना? उन्हें यह अत्याचार कभी पसंद न आता होगा। यह चपरासी लोग उनसे छिपा कर यों जबरदस्ती करते हैं। लेकिन कहीं उन्होंने मुझे अपने इजलास से खड़े-खड़े निकलवा दिया तो बड़े आदमियों को घमंड बहुत होता है। कोई हरज नहीं मैं सड़क पर खड़ा हो जाऊँगा और देखूँगा कि कैसे कोई मुसाफिरों की गाड़ी पकड़ता है। या तो दो-चार का सिर तोड़ के रख दूंगा या आप भी वहीं मर जाऊँगा। अब बिना गरम पड़े काम नहीं चल सकता। वह दादा बुलाने आ रहे है।

बलराज अपने बाप के पीछे-पीछे घर पहुंचा। रास्ते में कोई बात-चीत नहीं हुई। दिलासी बलराज को देकर बोली, कहीं जाके बैठ रहे? तुम्हारे दादा कब से खोज रहे। हैं। चलो, रोटी तैयार हैं।

बलराज---अखाड़े की ओर चला गया था।

बिलसी--तुम अखाड़े मत जाया करो।

बलराज--क्यों?

बिलसी–क्यों क्या, देखते नहीं हो, सबकी आँखे में कैसे चुभते हो? जिन्हें तुम अपना हितैषी समझते हो, वह सब के सब तुम्हारी जान घातक हैं। तुम्हें आग में ढकेलकर आप तमाशा देखेंगे। आज ही तुम्हें सरकारी आदमियों से भिड़ाकर कैसा दुबक गए।

बलराज ने इस उपदेश का उत्तर न दिया। चौके पर जा बैठा। उसके एक