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प्रेमाश्रम

ओर मनोहर था और दूसरी ओर जरा हट कर उनका हलवाहा रंगी चमार बैठा हुआ या। बिलसी ने जौ की मोटी-मोटी रोटियाँ, बथुआ का शाक और अरहर की दाल तीन थालियों में परोस दी। तब एक फूल के कटौरे में दूध ला कर बलराज के सामने रख दिया।

बलराज—क्या और दूध नहीं है?

बिलसी—दूध कहाँ है, बेगार में नहीं चला गया?

बलराज—अच्छा, यह कटोरा रंगी के सामने रख दो।

बिलसी—तुम खा लो, रंगी एक दिन दूध न खायेगा तो दुबला न हो जायेगा।

बलराज बेगार का हाल सुनकर क्रोध में आग हो रहा था। कटोरे को उठा कर आँगन की ओर ज़ोर से फेंक दिया। वह तुलसी के चबूतरे से टकरा कर टूट गया। बिलसी ने दौड़ कर कटोरा उठा लिया और पछताते हुए बोली, तुम्हें क्या हो गया है? राम, राम ऐसा सुंदर कटोरा चूर कर दिया। कहीं सनक तो नहीं गये हो?

बलराज—हाँ, सनक ही गया हूँ।

बिलसी—किस बात पर कटोरे को पटक दिया?

बलराज—इसी लिए की जो हमसे अधिक काम करता है उसे हमसे अधिक खाना चाहिए। हमने तुमसे बार-बार कह दिया है कि रसोई में जो कुछ थोड़ा-बहूत हो, वह सबके सामने आना चाहिए। अच्छा खायें, बुरा खायें तो सब खायें; लेकिन तुम्हें न जाने क्यों यह बात भूल जाती है? अब याद रहेगी। रंगी कोई बेगार का आदमी नहीं हैं, घर का आदमी है। वह मुँह से चाहे ने कहे, पर मन में अवश्य कहता होगा कि छाती फाड़ कर काम मैं करूँ और मूँछों पर ताव देकर खायें यह लोग। ऐसे दूध-भी खाने पर लानत है।

रंगी ने कहा—भैया नित तो दूध खाता हूँ, एक दिन न सही। तुम हक़-नाहक इनसे ख़फ़ा हो गए।

इसके बाद तीनों आदमी चुपचाप खाने लगे। खा-पी कर बलराज और रंगी अन्न की रखवाली करने नादिया की तरफ़ चले। वहाँ बलराज ने चरस निकाली और दोनों ने ख़ूब दम लगाए। जब दोनों अन्न के छिलके के बिछावन पर कम्बल ओढ़ कर लेटे तो रंगी बोला, काहे भैया, आज तुमसे लश्कर के चपरासियों से कुछ कहा सुनी हो गयी क्या?

बलराज—हाँ, हुज्जत हो गयी। दादा ने मना न किया होता तो दोनों को मारता।

रंगी—तभी दोनों तुम्हें बुरा भला कहने चले थे। मैं उधर से क्यारी में पानी खोल कर आरा था। मुझे देख कर दोनों चुप हो गए। मैंने इतना सुना, 'अगर यह लौंडा कल सड़क पर गाड़ियाँ पकड़ने में कुछ तकरार करे तो बस चोरी का इल्ज़ाम लगा कर गिरफ़्तार कर लो। एक पचास बेंत पड़ जाएँ तो इनकी शेखी उतर जाय।'

बलराज—अच्छा, यह सब यहाँ तक मेरे पीछे पड़े हुए हैं। तुमने अच्छा किया की मुझे चेता दिया, मैं कल सवेरे ही डिप्टी साहेब कि पास जाऊँगा।

रंगी—क्या करने जाओगे भैया। अच्छा आदमी नहीं हैं। बड़ी बड़ी सज़ा देता