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प्रेमाश्रम

आठ बज चुके थे, किन्तु अभी तक चारों ओर कुहरा छाया हुआ था। लखनपुर के किसान आज छुट्टी सी मना रहे थे। जगह-जगह अलाव के पास बैठे हुए लोग कल की घटना की आलोचना कर रहे थे। बलराज की धृष्टता पर टिप्पणियाँ हो रही थीं। इतने में ज्वालासिंह चपरासियों और कर्मचारियों के साथ गाँव में आ पहुँचे। गौस खाँ और उनके दोनों चपरासी पीछे-पीछे चले आते थे। उन्हें देखते ही स्त्रियाँ अपने अघमँजे बर्तन छोड़ छोड़ कर घरों में घुसीं। बाल-वृद्ध भी इधर-उधर दबक गये। कोई हार पर कूड़ा उठाने लगा, कोई रास्ते में पड़ी हुई खाट उठाने लगा। ज्वालासिंह गाँव भ्रमण करते हुए सुक्खू चौधरी के कोल्हुआड़े में आ कर खड़े हो गये। सुक्खू चारपाई लेने दौड़े। गौस खाँ ने एक आदमी को कुरसी लाने के लिए चौपाल दौड़ाया। लोगों ने चारों ओर से आ-आ कर ज्वालासिंह को घेर लिया। अमंगल के भय से सब के चेहरे पर हवाइयाँ उड़ रही थीं।

ज्वालासिंह-तुम्हारी खेती इस साल कैसी है?

सुक्खू चौधरी को नेतृत्व का पद प्राप्त था। ऐसे अवसरों पर वहीं अग्रसर हुआ करते थे। पर वह अभी तक घर में से चारपाई निकाल रहे थे, जो बृहदाकार होने के कारण द्वारे से निकल न सकती थी। इसलिए कादिर खाँ को प्रतिनिधि का आसन ग्रहण करना पड़ा। उन्होंने विनीत भाव से उत्तर दिया, हजूर अभी तक अच्छी है, आगे अल्लाह मालिक है।

ज्वालासिंह-यहाँ मुझे आवपाशी के कुएँ बहुत कम नजर आते हैं, क्या जमींदार की तरफ से इसका इंतजाम नहीं है?

कादिर हमारे जमींदार तो हजूर हम लोगों की बड़ी परवस्ती करते हैं, अल्लाह उन्हें सलामत रखें। हम लोग आप ही आलम के मारे कोई फिकर नहीं करते।

ज्वालासिंह- मुंशी गौस खाँ तुम लोगों की सरक्शी की बहुत शिकायत करते हैं। बाबू ज्ञानशंकर भी तुम लोगों से खुश नहीं हैं, यह क्या बात है? तुम लोग वक्त पर लगान नहीं देते और जब तकाजा किया जाता है, तो फिसाद पर अमादा हो जाते हो। तुम्हें मालूम है कि जमींदार चाहे तो तुमसे एक के दो वसूल कर सकता है।

गजाधर अहीर ने दबी जुबान से कहा, तो कौन कहे कि छोड़ देते हैं!

ज्वालासिंह क्या कहते हो? सामने आ कर कहो।

कादिर-कुछ नहीं हुजूर, यही कहता है कि हमारी मजाल है जो अपने मालिक के सामने सिर उठायें। हम तो उनके तावेदार हैं, उनका दिया खाते हैं, उनकी जमीन में बसते हैं, भला उनसे सरकशी करके अल्लाह को क्या मुँह दिखायेंगे? रही बकाया, सो हजूर जहाँ तक होता है साल तमाम तक कौड़ी-कौड़ी चुका देते हैं। हाँ, जब कोई काबू नहीं चलता तो कभी थोड़ी बहुत बाक़ी रहे भी जाती है।

ज्वालासिंह ने इसी प्रकार से और भी कई प्रश्न किये, किन्तु उनका अभीष्ट पूरा न हो सका। किसी की जवान से गौस खाँ या बाबू नानशंकर के विरुद्ध एक शब्द भी न निकला। अंत में हार मान कर वह पड़ाव को चल दिये।