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प्रेमाश्रम

 घरवालों के लिए, नये कपड़े लाये तो ज्ञानशंकर के परिवार के लिए भी लेते आये थे। लगभग पचास वर्षो से वह घर भर के लिए नये वस्त्र लाने के आदी हो गये थे। अब अलग हो जाने पर भी वह उस प्रथा को निभाते रहना चाहते थे। ऐसे आनंद के अवसर पर द्वेष भाव को जाग्रत रखना उनके लिए अत्यंत दुःखकर था। विद्या ने यह कपड़े तो रख लिए, पर इसके बदले में प्रभाशंकर के लड़कों, लड़कियों और बहू के लिए एकएक जोड़े घोती की व्यवस्था की। ज्ञानशंकर ने यह प्रस्ताव सुना तो चिढ़ कर बोले, यदि यहीं करना है तो उनके कपड़े लौटा क्यों नहीं देतीं?

विद्या--भला कपड़े लौटा दोगे तो वह अपने मन में क्या कहेंगे? वह बेचारे तो तुमसे मिलने को दौड़ते हैं और तुम भागे-भागे फिरते हो। तुम्हें रुपयों का ही ख्याल है न? तुम कुछ मत देना, मैं अपने पास से दूंगी।

ज्ञान–जब तुम धन्ना सेठों की तरह बातें करने लगती हो तो बदन में आग सी लग जाती है। उन्होंने कपड़े भेजे तो कोई एहसान नहीं किया। दुकानों का साल भर का किराया पेशग ले कर हड़प चुके हैं। यह चाल इसी लिए चल रहे हैं कि मैं मुंह भी न खोल सकें और उनका बड़प्पन भी बना रहे। अपनी गाँठ से करने तो मालूम होता।

विद्या-तुम दूसरों की कीर्ति को कभी-कभी ऐसा मिटाने लगते हो कि मुझे तुम्हारी अनुदारता पर दुःख होता है। उन्होंने अपना समझ कर उपहार दिया, तुम्हें इसमें उनकी चाल सूझ गयी।

ज्ञान---मुझे भी घर में बैठे सुख-भोग की सामग्रियाँ मिलतीं तो मैं तुमसे अधिक उदार बन जाता है तुम्हें क्या मालूम है कि मैं आजकल कितनी मुश्किल से गृहस्थी का प्रबंध कर रहा हूँ? लखनपुर से जो थोड़ा बहुत मिला उसी में गुजर हो रहा है। किफायत से न चलता तो अब तक सैकड़ों का कर्ज हो गया होता। केवले अदालत के लिए सैकड़ों रुपयों की जरूरत है। बेदखली और इजाफे के कागज-पत्र तैयार हैं, पर मुकदमे दायर करने के लिए हाथ में कुछ भी नहीं। उधर गाँववाले भी बिगड़े हुए हैं। ज्वालासिंह ने अवकी दौरे में उन्हें ऐसा सिर चढ़ा दिया कि मुझे कुछ समझते ही नहीं। मैं तो इन चिताओं में मरा जाता हूँ और तुम्हें एक न एक खुराफात सूझा करती है।

विद्या--मैं तुमसे रुपये तो नहीं माँगती!

ज्ञान---मैं अपने और तुम्हारे रुपयों में कोई भेद नहीं समझता। हाँ, जब रायसाहब तुम्हारे नाम कोई जायदाद लिख देंगे तो समझने लगेंगी।

विद्या-मैं तुम्हारा एक पैसा नहीं चाहती।

ज्ञान---माना, लेकिन वहाँ से भी तुम रोकड़ नहीं लाती हो। साल में सौ-पचास रुपये मिल जाते होंगे, इतने पर ही तुम्हारे पैर जमीन पर नहीं पड़ते। छिछले ताल की तरह उबलने लगती हो।

विद्या-तो क्या चाहते हो कि वह तुम्हें अपना घर उठा कर दे दें?

ज्ञान----वह बेचारे आप तो अधा लें, मुझे क्या देंगे? मैं तो ऐसे आदमी को पशु