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प्रेमाश्रम

फीस तो उसी दम दे दी और घर से रुपया लाने का बहाना करके वहाँ से निकल आये। लेकिन रास्ते में सोचने लगे, इनकी राय जरूर पक्की होती होगी, तभी तो उसका इतना मुल्य है। नहीं तो इतने आदमी उन्हें घेरे क्यों रहते। कदाचित् इसी लिए कल बुलाया है, खूब छान-परताल करके तब राय देंगे। अटकल-पच्चू बाते कहनी होती तो अभी ने कह देते। अँगरेजी नीति में यही तो गुण है कि दाम चौकस लेते हैं, पर माल खरा देते हैं। सैकड़ो नजीरें देखनी पड़ेगी, हिंदू शास्त्रो को मंथन करना पड़ेगा, तब जाके तत्व हाथ आयेगी, रुपये का कोई प्रबंध करना चाहिए। उसका मुंह देखने से काम न चलेगा। एक बात निश्चित रूप से मालूम तो हो जायेगी। यह नहीं कि मैं तो धोखे में निश्चित बैठा रहे और वहाँ दाल न गले, सारी आशाएँ नष्ट हो जायें। मगर यह व्यवसाय है उत्तम। आदमी चाहे तो सोने की दीवार खड़ी कर दे। मुझे शामत सवार हुई कि उसे छोड़ बैठा, नहीं तो आज क्या मेरी आमदनी दो हजार मासिक से कम होती? जब निरे काठ के उल्लू तक हजारों पर हाथ साफ करते है तो क्या मेरी ही न चलती? इस जमींदारी का बुरा हो। इसने मुझे कही का न रखा।

वह घर पहुँचे तो नौ बज चुके थे। विद्या अपने कमरे में अकेले उदास पड़ी थी, महरियाँ काम-धंधे में लगी हुई थी और पड़ोसिने विदा हो गयी थी। ज्ञानशंकर ने विद्या का सिर उठा कर अपनी गोद में रख लिया और गद्गद् स्वर से बोले, मुँह देखना भी न बदा था।

विद्या ने रोते हुए कहा, उनकी सूरत एक क्षण के लिए भी आँखो से नहीं उतरती। ऐसा जान पड़ता है, वह मेरे सामने खड़े मुस्करा रहे हैं।

ज्ञान----मेरा तो अब सांसारिक वस्तुओं पर भरोसा ही नहीं रहा। यही जी चाहता कि सब कुछ छोड़छाड़ के कहीं चल दें।

विद्या-कल शाम की गाड़ी से चलो। कुछ रुपए लेते चलने होंगे। मैं उनके षोडशे में कुछ दान करना चाहती हूँ।

ज्ञान-- हाँ, हाँ, जरूर। अब उनकी आत्मा को संतुष्ट करने का हमारे पास यहीं तो एक साधन रह गया है।

विद्या-उन्हें घोड़े की सवारी का बहुत शौक था। मैं एक धोड़ी उनके नाम पर देना चाहती हूँ।

ज्ञान--बहुत अच्छी बात है। दो-ढाई सौ में घोड़ा मिल जायेगा।

विद्यावती ने डरते-डरते यह प्रस्ताव किया था। ज्ञानशंकर ने उसे सहर्ष स्वीकार करके उसे मुग्ध कर दिया।

ज्ञानशंकर इस अपव्यय को इस समय काटना अनुचित समझते थे। यह अवसर ही ऐसा था। अब वह विद्या का निरादर तथा अवहेलना न कर सकते थे।


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राय बहादुर कमलानन्द लखनऊ के एक बड़े रईस और तालुकेदार थे। वार्षिक आय एक लाख के लगभग थी। अमीनाबाद में उनका विशाल भवन था। शहर में