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प्रेमाश्रम

कि विवाह केवल एक शारीरिक सम्बन्ध और सामाजिक व्यवस्था है। वह स्वयं कहते हैं कि मानव शरीर को कई सालों में सम्पूर्णत रूपातर हो जाता है। शायद आठ वर्ष कहते थे। यदि विवाह कैवल दैहिक सम्बन्ध हो तो इस नियमित समय के बाद उसका अस्तित्व ही नहीं रहता। इसका तो यह आशय हैं कि आठ वषो के बाद पति और पली इस धर्म-बधन से मुक्त हो जाते हैं, एक का दूसरे पर कोई अधिकार नहीं रहता। आज फिर यही प्रश्न उठाऊँगी। लो, आप ही आ गये। बोली, कहिए कहीं जाने को तैयार हैं क्या ?

ज्ञान--आज यहाँ थिएट्रिकल कम्पनी को तमाशा होनेवाला है। आप से पूछने आया हूँ कि आप के लिए भी जगह रिजर्वे कराता आऊँ ? आज बडी भीड होगी।

गायत्री–-विद्या से पूछा, वह जायगी ?

ज्ञान--वह तो कहती है कि माया को साथ ले कर जाने में तकलीफ होगी। मैंने भी आगह नहीं किया।

गायत्री--तो अकेले जाने पर मुझे भी कुछ आनद न आयेगा।

ज्ञान--आप न जायेगी तो मैं भी न जाऊँगा।

गायत्री-–तब तो मैं कदापि न जाऊँगी। आप की बातों में मुझे थिएटर से अविक आनद मिलता है। आइए, बैठिए। कल की बात अधूरी रह गयी थी। आप कहते घे, स्त्रियों में आकर्षण-शक्ति पुरुषो से अधिक होती है, पर आपने इसका कोई कारण नही बताया था।

ज्ञान--इसका कारण तो स्पष्ट ही है। स्त्रियों का जीवन-क्षेत्र परिमित होता है। और पुरुषों का विस्तृत। इसी लिए स्त्रियों की सारी शक्तियाँ केद्रस्थ हो जाती हैं और पुरुषो की विच्छिन्न।

गायत्री–-लेकिन ऐसा होता तो पुरुषो को स्त्रियों के अधीन रहना चाहिए था। वह उन पर शासन योकर करते ?

ज्ञान--तो क्या आप समझती हैं कि मर्द स्त्रियो पर शासन करते हैं? ऐसी बात तो नहीं है। वास्तव मे मर्द ही स्त्रियों के अधीन होते है। स्त्रियाँ उनके जीवन की विधाता होती है। देह पर उनका शासन चाहे न हो, हृदय पर उन्ही का साम्राज्य होता है।

गायत्री--तो फिर मर्द इतने निष्ठुर क्यों हो जाते हैं?

ज्ञान--भदों पर निष्ठुरता का दोष लगाना न्याय-विरुद्ध हैं। वह उस समय तक सिर नहीं उठा सकते, जब तक या तो स्त्री स्वयं उन्हें मुक्त न कर दे, अथवा किसी दूसरी स्त्री की प्रबल विद्युत शक्ति उन पर प्रभाव न डाले।

गायत्री--(हँसकर) आपने तो सारा दोष स्त्रियों के ही सिर रख दिया।

ज्ञानशकर ने भावुकता से उत्तर दिया, अन्याय तो वह करती हैं, फरियाद कौन सुनेगा?

इतने में विद्यावती मायाशंकर को गोद में लिए आ कर खडी हो गयी। माया चार