पृष्ठ:प्रेमाश्रम.pdf/८२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८५
प्रेमाश्रम

अभी हृष्ट-पुष्ट हैं, उम्र भी ज्यादा नहीं। उन्हें ऐसी क्या पड़ी है कि मेरे लिए इतना त्याग करे। मेरे लिए यह कितनी लज्जा की बात है कि अपने स्वार्थ के लिए उनका बुरा चेतूँ, उनके कुल के अंत होने की अमंगल-कामना करें। यह मेरी घोर नीचना है। लेकिन विचारों को इस उद्देश्य मैं हटाने का प्रयत्न एक प्रतिक्रिया का रूप धारण कर लेता था, जो अपने बहाव में धैर्य और संतोष के बांध को तोड़ डालता था। तब उनका हृदय उस शुभ मुहूर्त के लिए विकल हो जाता था, जब यह अतुल संपत्ति अपने हाथों में आ जायगी, जब वह यहाँ मेहमान के अस्थायी रूप से नहीं, स्वामी के स्थायी रूप से निवास करेंगे। वह नित इसी कल्पित सुख के भोगने में मग्न रहते थे। प्रायः रात-रात भर जागते रह जाते और आनन्द के स्वप्न देखा करते। उन्नति और सुधार के कितने ही प्रस्ताव उनके मस्तिष्क में चक्कर लगाया करते। सैर करने में उनको अब कुछ आनन्द न मिलता, अधिकतर अपने कमरे में ही पड़े रहते। यहां तक कि आशा और भय की अवस्था उनके लिए असह्य हो गयी। इस दुविधा में पड़े जेठ का महीना भी बीत गया और आषाढ़ आ पहुँचा।

राय साहब को अबकी पुत्र शौक के कारन पहाड़ पर जाने में विलम्ब हो गया था। पहला छींटा पड़ते ही उन्होंने सफर की तैयारी शुरू कर दी। ज्ञानशंगर में अब जब्त न हो सका। सोचा, कौन जाने यह नैनीताल में ही किसी नये विचारों की लैडी से विवाह कर लें। यहाँ कानोंकान किसी को खबर भी न हो, अतएव उन्होंने इन शंका को अंत करने का निश्चय कर लिया।

संघ्या हो गयी थी। वह मन को दृढ़ किये हुए राय साहब के कमरे में गये, किंतु देखा तो वहाँ एक और महाशय विद्यमान थे। यह किती कम्पनी का प्रतिनिधि था और राय साहब से उसके हिस्से लेने का अनुरोध कर रहा था। किन्तु राय साहब की बातों से ज्ञात होता था कि वह हिस्से लेने को तैयार नहीं हैं। अंत में एजेंट ने पूछा आखिर आप को इतनी शंका क्यों है? क्या आप का विचार है कि कम्पनी की जड़ मजबूत नहीं है?

राय साहब-जिस काम में सेठ जगतराम और मिस्टर मनचूरज शरीक हों के विषय में यह संदेह नहीं हो सकता।

एजेंट-तो क्या आप समझते हैं कि कम्पनी का संचालन उत्तम रीति न होगा?

राय साहब-कदापि नहीं।

एजेंट-तो फिर आपको उसका साझीदार बनने में क्या आपत्ति है? मैं आपकी सेवा में कम से कम पाँच सौ हिस्सों की आशा ले कर आया था। जब आप ऐसे विचारशील सज्जन व्यापारिक उद्योग से पृथक रहेंगे तो इस अभागे देश की उन्नति सदैव एक मनोहर स्वप्न ही रहेगी।

राय साहब-मैं ऐसी व्यापारिक समस्याओं को देशोद्धार की कुंजी नहीं समझता।

एजेंट--(आश्चर्य से) क्यों।

राय साहब–इसलिए कि सेठ जगतराम और मिस्टर मनचूरजी का विभव देश