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प्रेमाश्रम

जानते हैं कि घरेलू शिल्प हमारे प्रभुत्व का अंत कर देगा, इसीलिए वह इसका विरोध करते रहते हैं।

ज्ञानशंकर ने इस विवाद में भाग न लिया। राय साहब की युक्तियाँ अर्थशास्त्र के सिद्धांतों के प्रतिकूल थी, पर इस समय उन्हें उनका खंडन करने का अवकाश न था। जब एजेंट ने अपनी दाल गलते न देखी तो विदा हो गये। राय साहब ज्ञानशंकर को उत्सुक देख कर समझ गये कि यह कुछ कहना चाहते हैं, पर संकोचवश चुप है। बोले, आप कुछ कहना चाहते हैं तो कहिए, मुझे फुर्सत है।

ज्ञानशंकर की जबान न खुल सकी। उन्हें अब ज्ञान हो रहा था कि मैं जो कथन करने आया है, वह सर्वथा असंगत हैं, सज्जनता के बिलकुल विरुद्ध। राय साहब को कितना दुख होगा और वह मुझे मन में कितना लोभी और क्षुद्र समझेगें। बोले, कुछ नहीं, मैं केवल यह पूछने आया था कि आप नैनीताल जाने का कब तक विचार करते हैं।

राय साहब-आप मुझमें उब रहे हैं। आपकी आंखें कह रही हैं कि आपके मन में कोई और बात हैं, साफ कहिए। मैं आपस में बिलकुल सचाई चाहता हूँ।

ज्ञानशंकर बड़े असमंजस में पड़े। अंत में सकुचाते हुए बोले, यही तो मेरी भी इच्छा है, पर यह वात ऐसी भद्दी है कि आपसे कहने हुए लज्जा आती है।

राय साहब- मैं समझ गया। आपके कहने की जरूरत नहीं। मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि जिन गप्पों को सुन कर आपको यह शंका हुई है वह बिलकुल निस्सार हैं। मैं स्पष्टवादी अवश्य हूँ, पर अपने मुंह-देखे हितैषियों की अवज्ञा करना मेरी सामर्थ्य से बाहर है। पर जैसा आप से कह चुका हूँ, वह किम्बदन्तियाँ सर्वथा असार है। यह तो आप जानते हैं कि मैं पिठे-पानी का कायल नहीं और न ही समझता हूँ कि संतान के बिना मेरा संसार सूना हो जायगा। रहा इंद्रिय-सुखभोग, उमके लिए मेरे पास इतने साधन है कि मैं पैरों में लोहे की बेड़ियाँ डाले बिना ही उसकी आनद उठा सकता हूँ। और फिर मैं कभी कामवासना का गुलाम नहीं रहा, नहीं तो इस अवस्था में आप मुझे इतना हृष्ट-पुष्ट न देखते। मुझे लोग कितना ही विलासी समझे पर वास्तव में मैंने युवावस्था से ही संयम का पालन किया है। मैं समझता हूँ कि इन बातों में आपकी शंका निवृत्त हो गयी होगी। लेकिन बुरा न मानिएगा, उड़ती खबरों को सुन कर इतना व्यस्त हो जाना मेरी दृष्टि में आपका सम्मान नहीं बढ़ाता। मान लीजिए, मैंने विवाह करने का निश्चय ही कर लिया हो तो यह आवश्यक नहीं कि उसमें संतान भी हो और हो भी तो पुत्र ही, और पुत्र भी हो तो जीवित रहे। फिर मायाशंकर अभी अबोध बालक है। विधाता ने उसके भाग्य में क्या लिख दिया हैं, इसे हम या आप नहीं जानते। यह भी मान लीजिए कि वह वयस्क होकर मेरा उत्तराधिकारी भी हो जाये तो यह आवश्यक नहीं कि वह इतना कर्त्तव्यपरायण और सच्चरित्र हो जितना आप चाहते हैं। यदि वह समझदार होता और उसके मन में यह् शंकाएं पैदा होती तो मैं क्षम्य समझता, लेकिन आप जैसे बुद्धिमान मनुष्य का