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प्रेमाश्रम

गयी। अकड़ कर बोले, अच्छा यह बात है तो मैं भी दिखा देता हूँ कि मैं किसी अँगरेज से कम नही हैं। यह लोग भी समझेंगे कि किसी हिन्दुस्तानी हाकिम से काम पड़ा था। अब तक तो मैं यही समझता था कि सारी खता हम लोगों की है। अब मालूम हुआ कि यह देहातियों की शरारत है। अलमद साहब, आप हल्के के सब-इन्स्पेक्टर को रूबकार लिखिए कि वह फौरन इस मामले की तहकीकात करके अपनी रिपोर्ट पेश करें।

चपरासी-ज्यादा नहीं तो हुजूर इन लोगों से मुचलका तो जरूर ही ले लिया जाय।

गौस खाँ—इस लौंडे की गोशमाली जरूरी है।

ज्वालासिंह-जब तक रिपोर्ट न आ जाय मैं कुछ नहीं करना चाहता।

परिणाम यह हुआ कि सन्ध्या समय बाबू दयाशंकर जो फिर बहाल हो कर इस हलके में नियुक्त हुए थे लखनपुर में पहुँचे। कई कॉन्स्टेबल भी साथ थे। इन लोगों ने चौपाल में आसन जमाये। गाँव के सब आदमी जमा किये गये। मगर बलराज का पता न था। वह और रगी दोनों नील गायों को भगाने गये थे। दारोगा जी ने बिगड़ कर मनोहर से कहा, तेरा बेटा कहाँ है? सारे फिसाद की जड़ तो वहीं है, तूने कही भगा तो नहीं दिया? उसे जल्द हाजिर कर, नहीं तो वारंट जारी कर दूंगा।

मनोहर ने अभी उत्तर नही दिया था कि किसी ने कहा, वह “बलराज आ गया। सबकी आँखें उसकी ओर उठी। दो कान्स्टेबलों ने लपक कर उसे पकड़ लिया और दूसरे दो कॉन्स्टेबलो ने उसकी मुश्के कसनी चाही। बलराज ने दीन-भाव से मनोहर की ओर देखा। उसकी आँखो मे भयंकर संकल्प तिलमिला रहा था।

वह कह रही थी कि यह अपमान मुझसे नहीं सहा जा सकता। मैं अब जान पर खेलता हूँ। आप क्या कहते हैं? मनोहर ने बेटे की यह दशा देखी तो रक्त खौल उठा। बावला हो गया। कुछ न सूझा कि मैं क्या कर रहा हूँ। बाज की तरह टूट कर बलराज के पास पहुँचा और दोनों कान्स्टेबलों को धक्का दे कर बोला, छोड़ दो, नहीं तो अच्छा न होगा।

इतना कहते-कहते उसकी जबान बंद हो गयी और आँखो से आँसू निकल पड़े। सुक्खू चौधरी मन में फूले न समाते थे। उन्हें वह दिन निकट दिखायी दे रहा था, जब मनोहर के दसो बीघे खेत पर उनके हल चलेंगे। दुखरन भगत काँप रहे थे कि मालूम नहीं क्या आफत आ गयी। डपटसंह सोच रहे थे कि भगवान करे मार-पीट हो जाय तो इन लोगों की खूब कुन्दी की जाय और बिसेसर साह थर-थर काँप रहे थे, केवल कादिर खाँ को मनोहर से सच्ची सहानुभूति थी। मनोहर की उद्दडता से उसके हृदय पर एक चोट-सी लगी।-सी, मार-पीट हो गयी तो फिर कुछ बनाये न बनेगी। तुरन्त जा कर दयाशंकर के कानों में कहा, हुजूर हमारे मालिक हैं। हम लोग आप ही की रिआया है। सिपाहियों को मने कर दे, नहीं तो खून हो जायगा। आप जो हुक्म देंगे उसके लिए मैं हाजिर हूँ। दयाशंकर उन आदमियों में न थे, जो खो कर भी कुछ नहीं सीखते है उन्हें अपने अभियोग ने एक बड़ी उपकारी शिक्षा दी थी। पहले वह