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प्रेमा‌श्रम

मैं रुपये ले लूँ तो मुझे बाजार से दस छटॉक का मोल ले कर देना पड़ेगा।

गिरधर--जो चाहो करो, पर सरकार का हुक्म तो मानना ही पडेगा। लालगज में ३० रुपये दे आया हूँ। वहाँ गाँव मे एक भैस भी नहीं है। लोग बाजार से ही ले कर देगे। पडाव मे २० रुपये दिये है। वहाँ भी जानते हो किसी के भैस नही है।

मनोहर--भैस न होगी तो पास रुपये होगे। यहाँ तो गाँठ मे कौडी भी नहीं है।

गिरघर--जब जमीदार को जमीन जोतते हो तो उसके हुक्म के बाहर नहीं जा सकते।

मनोहर--जमीन कोई खैरात जोतते है। उसका लगान देते है। एक किस्त भी बाकी पड़ जाये तो नालिस होती है।

गिरधर--मनोहर, घी तो तुम दोगे दौडते हुए, पर चार बाते सुन कर। जमीदार के गाँव मे रहकर उससे हेकडी नही चल सकती। अभी कारिंदा साहबे बुलायेगे तो रुपये भी दोगे, हाथ-पैर भी पढोगे, मैं सीधे-सीधे कहता हूँ तो तेवर बदलते हो।

मनोहर ने गर्म हो कर कहा--कारिंदा कोई काटू है न जमीदार कोई हौवा है। यहाँ कोई दबेल नहीं है। जब कौडी-कौडी लगान चुकाते है तो धौस क्यो सहे? ।

गिरधर --सरकार को अभी जानते नहीं हो। बड़े सरकार का जमाना अब नही है। इनके चगुल मे एक बार आ जायोगे तो निकलते न बनेगा।

मनोहर की कोषाग्नि और भी प्रचड हुई। बोला, अच्छा जाओ, तोप पर उडवा देना। गिरधर महाराज उठ खडे हुए। सुक्खू और दुसरन ने अब मनोहर के साथ बैना उचित न समझा। वह भी गिरवर के साथ चले गये। मनोहर ने इन दोनो आदमियो को तीव्र दृष्टि से देखा और नारियल पीने लगा।


लखनपुर के जमीदारो का मकान काशी मे औरगाबाद के निकट या। मकान के दो खड आमने-सामने बने हुए थे। एक जनाना मकान था, दूसरी मरदानी बैठक। दोनो बडो के बीच की जमीन वेल-बूटे से सजी हुई थी, दोनो ओर ऊंँची दीवारे खीची हुई थी, लेकिन दोनो ही बड जगह-जगह टूट-फूट गये थे। कही कोई कडी टूट गयी थी और उसे थूनियो के सहारे रोका गया था, कही दीवार फट गयी थी और कही छन फँस पडी थी--एक वृद्ध रोगी की तरह जो लाठी के सहारे चलता हो। किसी समय यह परिवार नगर मे बहुत प्रतिष्ठित था, किन्तु ऐश्वर्य के अभिमान और कुल-मर्यादा-पालन ने उसे धीरे-धीरे इतना गिरा दिया कि अब मोहल्ले का वनिया पैसे-धेले की चीज भी उनके नाम पर उधार न देता था। लाला जटाशकर मरते-मरते मर गये, पर जब घर से निकले तो पालकी पर। लड़के-लडकियो के विवाह किये तो हौसले से। कोई उत्सव आता तो हृदय सरिता की भांँति उमड़ आता था, कोई मेहमान आ जाता तो उसे सर-आँखो पर बैठाते, साघु-सत्कार और अतिथि सेवा में उन्हे हार्दिक आनद होता था। इसी मर्यादा-रक्षा में जायदाद का बडा भाग बिक गया, कुछ रेहन हो गया