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प्रेमाश्रम

उसने जिल्दबन्दी की दुकान खोल ली, नौकरी से इस्तीफा दे दिया। आपने उसकी जगह पर एक गंवार अहीर को मुकर्रर कर लिया। है तो अर्दली चपरासी, पर उसका काम है गायें दुहना, उन्हें चारा-पानी देना। दौरे के चौकीदारों में दो कार रख लिये हैं। उनसे खिदमतगारी का काम लेते हैं। जब इन हथकड़ो से काम चलें तो बेगार की जरूरत ही क्या हम लोगों को अलबत्ता हुक्म मिला है, बेगार न लिया करो।

सूर्य अस्त हुए। खाँ साहब को याद आ गया कि नमाज का वक्त गुजरा जाता है। वजू किया और एक पेड़ के नीचे नमाज पढ़ने लगे।

इतने में बिसेसर साह ने रावटी के द्वार पर आकर अहमद साहब को अदद से सलाम किया। स्थूल शरीर, गाढ़ की मिर्जई, उस पर गाढ़े की दोहर, सिर पर एक मैलीसी पगड़ी, नंगे पाँव, मुख मलिन, स्वार्थपूर्ण विनय की भूत बने हुए थे। एक चपरासी ने डाँट कर कहा, यह कहीं घुसे चले आते हो? कुछ अफसरों को अदब-लिहाज भी है।

बिसेसर साह दो-तीन पग पीछे हट गये और हाथ बाँध कर बोले, सरकार एक विनती है। हुक्म हो तो अरज करूँ।

ईजाद क्या कहते हो? तुम लोगों के मारे तो दम मारने की भी फुर्सत नहीं। अब देखो, एक न एक आदमी शैतान की तरह सिर पर सवार रहता है।

बिसेसर--हुजूर बड़ी देर से खड़ा हूँ।

ईजाद-अच्छा, खैर अपना मतलब कहो।

बिसेसर—यही अरज है हुजूर कि मुझसे मुचलका न लिया जाय। बड़ा गरीब हूँ। सरकार, मिट्टी में मिल जाऊँगा।

अहलमद साहब के यहाँ ऐसे गरज के बावले, आँख के अन्धे गाँठ के पूरे नित्य ही आया करते थे। वह उनके कल-पुरजे खूब जानते थे। पहले मुंह फेरा, फिर अपनी विवशता प्रकट की पर भाव ऐसा शीलपूर्ण बनाये रखा कि शिकार हाथ से निकल न जाये। अन्त में मामले पर आये। रुपये लेते हुए ऐसा मुँह बनाया, मानो दे रहे हो। साह जी को दिलासा देकर विदा किया।

चपरासी ने पूछा, क्या इससे मुचलका न लिया जायेगा?

ईजाद-लिया क्यों न जायगा। फैसला लिखा हुआ तैयार हैं। इसके लिए जैसे सौ, वैसे एक सौ बीस। मैंने उससे यह हरगिज नहीं कहा कि तुम्हें मुचलका से निजात दिला दूंगा। महज इतना कह दिया कि तुम्हारे लिए अपने इमकान भर कोशिश करूंगा। उसकी तसकीन इतने से ही हो गयी तो मुझे ज्यादा दर्द सर की क्या जरूरत थी? रिश्वत को लोग नाहक बदनाम करतें हैं। इस वक्त मैं इससे रुपये न लेता, तो इसकी न जाने क्या हालत होती। मालूम नहीं, कहाँ-कहाँ दौड़ता और क्या-क्या करता? रुपये देकर इसके सिर का बोझ हलका हो गया और दिल पर से बोझ उत्तर गया। इस वक्त आराम से खायेगा और मीठी नींद सोयेगा। कल कह दूंगा, भाई, क्या करूँ, बहुत हाथ-पैर मारे, पर डिप्टी साहब राजी न हुए। मौका देखेगा तो एक चाल और चलूँगा। कहूँगा, डिप्टी साहब को कुछ नजर दिये बिना काम पूरा न होगा। सौ