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प्रेमाश्रम

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१२ प्रेमाश्रम मैं रुपये ले लें तो मुझे बाजार से दस छटॉक का मोल ले कर देना पड़ेगा। गिरधर-जो चाहो करो, पर सरकार का हुक्म नौ मानना ही पड़ेगा। लालगज़ में ३० रुपये दे अया हैं। वहाँ गाँव में एक भैस भी नहीं है। लोग बाजार से ही ले कर देगे। पडाव २० रुपये दिये हैं। वहाँ भी जानते हो किसी के भैस नही है। मनोहर-भैस न होगी तो पास रुपये होगे । यहाँ तो गाँठ मे कौडी भी नहीं है। गिरधर-जब जमींदार की जमीन जोतते हो तो उसके हुक्म के बाहर नहीं जा सकले। मनोहर- जमीन कोई खैरात जोतते है! उसका लगान देते है। एक किस्त भी बाकी पड जाये तो नालिसे होती हैं। गिरधर—मनोहर, घी तो तुम दोगे दौडते हुए, पर चार बाते सुन कर। जमीदार के गाँव में रहकर उससे हेकडी नहीं चल सकती। अभी कारिदा साहबे बुलायेंगे तो रुपये भी दोगे, हाथ-पैर भी पढोगें, मैं सीधे-सीधे कहती हैं तो तेवर बदलते हो। | मनोहर ने गर्म हो कर कहा—कारिंदा कोई कोटू है न जमीदार कोई हौवा है। यहाँ कोई दबेल नहीं है। जब कौडी-कौड लगान चुकाते है तो घौस क्यो सहे? । गिरधर सरकार को अभी जानते नहीं हो। बडे सरकार का जमाना अब नही है। इनके चगुल में एक बार आ जाओगे तो निकलते न बनेगा ।। | मनोहर की घाग्नि और भी अचई हुई। वोला, अच्छा जातो, तोप पर उडचा देना। गिरधर महाराज उठ खड़े हुए। सुक्खू और दुखरन ने अव मनोहर के साथ बैना उचित न समझा। वह भी गिरधर के सथि चले गये। मनोहर ने इन दोनों आदमियो को तीव्र दृष्टि से देखा और नारियल पीने लगा। लखनपुर के जमीदारो का मकान काशी मे औरगाबाद के निकट था। मकान के दो खड आमने-सामने बने हुए थे। एक जनाना मकान थी, दूसरी मरदानी बैठक। दोनो वडो के बीच की जमीन वैल-बूटे से सजी हुई थी, दोनों ओर ऊंची दीवारे खीची हुई थी, लेकिन दोनो ही खड जगह-जगह टूट-फूट गये थे। कहीं कोई कडी टूट गयी थी और उसे थुनियो के सहारे रोका गया था, कही दीवार फट गयी थी और कहीं। छन बँस पड़ी थी--एक वृद्ध रोगी की तरह जौ लाठी के सहारे चलता हो। किसी समय यह परिवार नगर में बहुत प्रतिष्ठित या, किन्तु ऐश्वर्य के अभिमान और कुल-मर्यादापालन ने उसे धीरे-धीरे इतना गिरा दिया कि अब मोहल्ले का वनिया पैसे-धेले की चीज भी उनके नाम पर उधार न देता था। लाली जटाशकर मरते-मरते मर गये, पर जब घर से निकले तो पालकी पर। लड़के-लडकियो के विवाह किये तो हौसले से। कोई उत्सव आता तो हृदय सरिता की भाँति उमड़ आता था, कोई मेहमान आ जाती तो उसे सर-आँखो पर बैठाते, साधू-सत्कार और अतिथि-सेवा में उन्हें हार्दिक आनंद होता था। इसी मर्यादा-रक्षा में जायदाद का वडा भाग बिक गया, कुछ रेहन हो गया