पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१०४

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भारतकी स्वाधीनता और पराधीनता।
 

चिरकालसे भारतवर्षकी साधारण प्रजा शुद्र है। ब्राह्मण आदि तीनों श्रेष्ठ वर्ण शूद्रोंकी अपेक्षा बहुत कम थे। इन तीनों वर्गों में ब्राह्मण और क्षत्रिय देशके शासक थे। इन बातोंको यहाँपर जरा विस्तारके साथ लिखनेकी आव- श्यकता जान पड़ती है।

लोगोंका विश्वास है कि प्राचीन भारतमें केवल क्षत्रिय ही राजा थे। किन्तु वास्तवमें यह बात नहीं है। राज-काजके दो विभाग थे। युद्ध आदिका काम क्षत्रियोंके ऊपर था और राजव्यवस्थानिर्वाचन, न्याय-विचार इत्यादिका काम ब्राह्मणोंके हाथमें था। इस समय जैसे सिविल और मिलिटरी ये दो राजकाजके विभाग हैं, उस समयकी व्यवस्था भी कुछ ऐसी ही थी। ब्राह्मण लोग सिविल कर्मचारी थे और क्षत्रिय लोग मिलिटरी थे। इस समय भी जैसे मिलिटरीकी अपेक्षा सिविल कर्मचारियोंकी अधिक प्रधानता है, वैसे ही उस समय भी थी। राजपुरुषोंमें राजपदवी क्षत्रियोंको ही दी जाती थी, किन्तु कार्यतः उनपर भी ब्राह्मणोंका दबाव था, या यों कहो कि वे भी ब्राह्मणोंके मातहत थे । यह बात भी नहीं है कि प्राचीन भारतमें सदा क्षत्रिय ही राजा रहे हों। जान पड़ता है, पहलेके समयमें क्षत्रिय ही राजा थे; किन्तु बौद्ध युगमें मौर्यआदि संकरजातीय राजवंश भी देख पड़ते हैं । चीनी यात्री व्हेन्त्सांग सिन्धु-पारमें ब्राह्मण राजा देख गया था। अन्यत्र भी ब्राह्मणोंने 'राजा' नाम धारण कर लिया था। मध्यकालके अधिकांश राजा ही राजपूत थे। राजपूत लोग क्षत्रियवंशसे उत्पन्न संकरजाति हैं। प्राचीन भार- तमें क्षत्रियोंकी प्रधानता चिरकाल तक अप्रतिहत नहीं रही, ब्राह्मणोंका गौरव एक दिनके लिए भी कम नहीं हुआ। वेदविद्वेषी बौद्धोंके समयमें भी राजकाज ब्राह्मणोंके हाथसे दूसरोंके हाथ नहीं गया। क्यों कि वे ही पण्डित, सुशिक्षित और उस कार्य करनेकी शक्ति रखनेवाले थे। अतएव प्राचीन भारतमें ब्राह्मण लोग ही असलमें राजपुरुष कहलाने योग्य थे। सुविज्ञ लेखक बाबू ताराप्रसाद चट्टोपाध्यायने बंगाल-मेगजीनमें, एक प्रबन्धमें, ठीक ही लिखा है कि ब्राह्मण ही प्राचीन भारतके अँगरेज थे।

अब प्रश्न यह कि आधुनिक भारतवर्षके देसी और विलायती लोगोंमें जो वैषम्य देख पड़ता है वह क्या प्राचीन भारतके ब्राह्मण और शूद्रोंके वैषम्यकी अपेक्षा बहुत अधिक है ?

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