पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१०७

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बंकिम-निबन्धावली—
 

कारण हम लोग खुद कोई काम नहीं कर पाते। इससे हम राज्यरक्षा और राज्यपालनकी विद्या नहीं सीखते। जातीयगुणकी स्फूर्ति नहीं होती। अतएव स्वीकार करना पड़ता है कि पराधीनता इस ओर हमारी उन्नतिमें बाधा डालती है। किन्तु वैसे ही दूसरी ओर हम यूरोपके साहित्य और विज्ञानकी शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। यूरोपियन जातिके अधीन हुए बिना हमको यह सुख नसीब न होता। अतएव पराधीनतामें जैसे एक ओर हमारी क्षति होती है, वैसे ही दूसरी ओर उन्नति हो रही है।

अतएव यही समझा जाता है कि आधुनिक भारतकी अपेक्षा प्राचीन भारतवर्षमें उच्च श्रेणीके लोगोंको स्वाधीनताका कुछ सुख था। किन्तु- अधिकांश लोगोंके लिए प्रायः दोनों ही बराबर हैं; बल्कि आधुनिक भारत- वर्ष अच्छा है।

दोनोंकी तुलना करनेसे हमने जो जाना है, उसे संक्षेपमें फिर नीचे लिखते हैं। इससे बहुत लोगोंको समझनेमें सुविधा होगी।

१—भिन्न जातिका राजा होनेसे राज्य परतन्त्र या पराधीन नहीं होता। भिन्नजातीय राजाके अधीन राज्यको भी स्वतन्त्र और स्वाधीन कह सकते हैं।

२—स्वतन्त्रता और स्वाधीनता, परतन्त्रता और पराधीनता, इनके हम भिन्न भिन्न पारिभाषिक अर्थ लिख चुके हैं।

विदेशनिवासी राजाके द्वारा शासित राज्य परतन्त्र है। जहाँ भिन्न जातिकी प्रधानता है, वह राज्य पराधीन है। अतएव कोई राज्य परतन्त्र है, पर परा- धीन नहीं है। कोई राज्य स्वतन्त्र है, पर स्वाधीन नहीं है। कोई राज्य पर- तन्त्र है और पराधीन भी है।

३—किन्तु तुलनाका उद्देश्य उत्कर्ष और अपकर्ष देखना है। जिस राज्यमें लोग सुखी हैं वही उत्कृष्ट है। जिस राज्यमें लोग दुखी हैं वही अपकृष्ट है। विचारणा यही है कि आधुनिक भारतकी प्रजा स्वतन्त्र और पराधीन अव-स्थामें कितनी दुखी है।

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