पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/११५

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बंकिम-निबन्धावली—
 

इस देशमें अधिकांशका मत है कि हिन्दूके घर पैदा होकर कोई विधवाका ब्याह न कर सकेगा या समुद्रयात्रा न कर सकेगा। अल्पांशका मत है विध- वाका ब्याह करना अवश्य कर्त्तव्य है और इंग्लैंडकी यात्रा परम इष्ट है। किन्तु यदि यह अल्पांश अपने मतके अनुसार कार्य करे—विधवा कन्याका ब्याह करे और विलायत जाय, तो अधिकांश उसे समाजसे बाहर कर देगा। यही अधिकांशका अल्पांशके ऊपर किया गया अत्याचार है।

इंग्लैंडमें अधिकांश लोग ईसाके भक्त और ईश्वरवादी हैं । जो अनीश्वरवादी है और ईसाका भक्त नहीं है, वह साहस करके अपने मतको वहाँ प्रकट नहीं कर सकता। प्रकट करनेसे उसे अनेक प्रकारकी सामाजिक पीड़ाओंसे पीड़ित होना पड़ता है। जान स्टुअर्ट मिल जिन्दगी भर अपनी अभक्तिको व्यक्त नहीं कर सके। व्यक्त न करके भी, केवल सन्देहपात्र होकर पार्लियामेंटमें प्रवेश करनेके समय उन्हें अनेक विघ्न-बाधाओंसे तंग होना पड़ा था । मृत्युके बाद उन्हें अनेक गालियाँ भी खानी पड़ी । यह अत्यन्त घोर सामाजिक अत्याचार है।

अतएव सामाजिक अत्याचारियोंकी दो श्रेणियाँ हैं। एक समाजके शासक और व्यवस्थापक और दूसरे समाजके अधिकांश लोग। इन्हींके अत्याचारसे सामाजिक दुःखकी उत्पत्ति होती है। ये सामाजिक दुःख समाजकी अवनतिके कारण हैं। इनका निराकरण मनुष्यसाध्य और मनुष्यके लिए आवश्यक कर्त्तव्य है। किन उपायोंसे इनका निराकरण हो सकता है ? ऐसे दो उपाय हैं—एक बाहुबल और दूसरा वाक्यबल।

पहले यह समझाया जायगा कि बाहुबल किसे कहते हैं और वाक्यबल किसे कहते हैं। इसके बाद इन दोनों बलोंका प्रयोग समझाया जायगा और दोनोंका भेद और तारतम्य भी दिखाया जायगा।

किसीको यह बतानेकी जरूरत नहीं है कि जिस बलके द्वारा बाघ मृगके बच्चेको मारकर खा जाता है और जिस बलसे आस्टलिज या सेडन जीता गया था—दोनों ही बाहुबल हैं। मैंने अभी लिखते लिखते देखा, एक छिपकली मक्खीको पकड़कर निगल गई। सिस्टिससे सिकन्दर तक जितने लोगोंने

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