पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/११९

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बंकिम-निबन्धावली—
 

बाहुबलमें उनके समकक्ष नहीं है, तथापि प्रजाके साथ बाहुबलकी परीक्षा सुखदायक नहीं है । अतएव वे बाहुबलके प्रयोगकी आशंका देखकर अपने वाञ्छित मार्गमें गमन नहीं करते ।

अतएव देखा जाता है कि केवल भावी फल समझा सकनेहीसे बिना प्रयोगके बाहुबलका कार्य सिद्ध हो जाता है । इस प्रवृत्ति और निवृत्तिको देनेवाली शक्ति और एक दूसरा बल है। उसमें वाक्यके द्वारा समझाना पड़ता है । इसीसे वह यहाँपर वाक्यबलके नामसे लिखा जाता है।

यह वाक्यबल अत्यन्त आदरणीय पदार्थ है । बाहुबलसे मनुष्य-संहार आदि विविध अनिष्ट होते हैं । किन्तु वाक्यबल बिना रक्तपातके—बिना अस्त्राघातके—बाहुबलका काम निकाल देता है । अतएव इसकी विशेष रूपसे समालोचना होनी चाहिए कि यह वाक्यबल क्या है और इसका प्रयोग, लक्षण और विधान किस प्रकारका है । हमारे देशमें बाहुबलके प्रयोगकी कोई संभावना नहीं है और वर्तमान अवस्थामें वह अकर्त्तव्य भी है । सामाजिक अत्याचारके निवारणका एक मात्र उपाय वाक्यबल है । अतएव वाक्यबलकी उन्नति खास तौरसे की जानी चाहिए।

वास्तवमें बाहुबलकी अपेक्षा सब अंशोंमें वाक्यबल श्रेष्ठ है । अबतक बाहुबलसे संसारकी अवनति ही हुई है। उन्नति जो कुछ हुई है, वह वाक्य- बलसे । सभ्यताकी जो कुछ उन्नति हुई है वह वाक्यबलसे ही हुई है । समाजनीति, राजनीति, धर्मनीति, साहित्य, विज्ञान, शिल्प आदि जिस चीजकी उन्नति हुई है, वाक्यबलसे हुई है । वक्ता, लेखक, दार्शनिक, वैज्ञानिक, नीतिवेत्ता, धर्मवेत्ता, व्यवस्थावेत्ता आदि सबका बल वाक्य- बल है।

इससे यह कोई न समझे कि बाहुबलके प्रयोगका निवारण ही वाक्य- बलका परिणाम है, या इसीके लिए वाक्यबलका प्रयोग होता है । मनुष्य कुछ कुछ पशुचरित्रको छोड़कर उन्नत अवस्थाको प्राप्त हुआ है । अक्सर मनुष्य भयभीत न होकर भी अच्छे काम करता है । यदि किसी समय एकदम समाज भरकी किसी विशेष अच्छे काममें प्रवृत्ति उत्पन्न हो, तो वह सत्कार्य अवश्य अनुष्ठित होता है।कभी कभी ज्ञानीके उपदेशके बिना

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