पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१३१

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बंकिम-निबन्धावली—
 

चाहते हैं। विशेष कर हम राजनारायण बसु महाशयसे पूछते हैं कि जब आपने अपनी एक पुस्तकमें गोहत्याका निषेध किया है, तब आप क्यों अपनी वक्तृतामें बाबू लोगोंपर खड्गहस्त हुए हैं ? बाबू लोग गऊ-बैलोंसे किस बातमें कम या निकृष्ट हैं ? जैसे गऊ-बैल उपकार करते हैं वैसे ही ये भी करते हैं। ये लोग अखबाररूपी सुस्वादु दूध मटके भर भर कर देते हैं, चाकरीका हल कंधेपर लादकर जीवनके खेतको जोत कर अँगरेज किसानोंको अन्न-धन पैदा करने में सहायता पहुंचाते हैं, विद्याके बोरे कालेजोंसे पीठपर लाद लाद कर छापेखानों में आकर डाल देते हैं, समाज- संस्कारकी गाडीपर विलायती माल लाद कर रसके बाजारमें पहुँचाते हैं और देशहितके कोल्हमें स्वार्थ-सरसों पेरकर यशरूपी तेल निकालते हैं। भला ऐसे जीवोंपर कोई खड्गहस्त होता है ! हमारे देशके इन बाबुओंकी लोग जितनी निन्दा करते हैं वास्तवमें उतने निन्दनीय वे नहीं हैं। बहुतसे स्वदेशवत्सल लोग जिस अभिप्रायसे बाबुओंकी निन्दा करते हैं, राजनारायण- जीने भी उसी अभिप्रायसे—बाबुओंके हितके लिए—उनकी निन्दा की है। अपने " तब और अब ” शीर्षक लेखमें निरपेक्षभावसे 'भूत' और 'वर्तमान' की आलोचना करना उनका उद्देश्य नहीं। वर्तमान' के दोष दिखलाना ही उनका उद्देश्य है। उन्होंने ' वर्तमान' के गुणोंपर दृष्टि नहीं डाली और दृष्टि डालना भी व्यर्थ था; क्यों कि वर्तमान बाबुओंको अपने गुणोंके विषयमें तो कुछ भी सन्देह नहीं है—वे केवल अपने दोषोंको ही नहीं देख पाते।

यह कहना अनुचित नहीं कि इस नई पौधमें कई दोष हैं। उन सबमें 'अनुकरणका अनुराग ' एक ऐसा दोष है जिसपर सबका कटाक्ष है। इसके लिए क्या अँगरेज और क्या हिन्दुस्तानी, सभी नित्य. इस पौधका तिरस्कार करते हैं। इस विषयमें राजनारायणजीने जो कुछ कहा है उसे उद्धृत करनेकी यहाँ कोई आवश्यकता नहीं दीख पड़ती। वे बातें आजकल हर एक पुराने ढंगके आदमीके मुखसे सुन पड़ती हैं।

हम उन बातोंको स्वीकार करते हैं, और यह भी मानते हैं कि राजना- रायणजीने जो कहा है उसमें बहुत कुछ सत्य है; किन्तु अनुकरणके बारेमें

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