पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१३२

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अनुकरण।
 

हम उनसे सहमत नहीं। अनुकरणके सम्बन्धमें लोगोंकी कुछ भ्रान्त धारणायें हो गई हैं।

क्या अनुकरण करना ही दोष है ? यह कभी हो नहीं सकता। अनुकरणके सिवा प्रथम शिक्षा प्राप्त करनेका कोई उपाय ही नहीं है । जैसे छोटा बच्चा सयाने लोगोंकी बातोंका अनुकरण करके बोलना सीखता है, जैसे वह सया- नोंके कामोंको देखकर अनुकरण करके उन्हें करना सीखता है, वैसे ही असभ्य और अशिक्षित जातियाँ सभ्य और शिक्षित जातियोंका अनुकरण करके वैसी ही बनती हैं । अतएव नई पौधके हिन्दुस्तानी अगर अँगरेजोंका अनुकरण करते हैं तो वह ठीक है—युक्तिसंगत है। यह सच है कि आदिकी सभ्य जातियाँ, बिना किसीका अनुकरण किये शिक्षित और सभ्य बनीं—प्राचीन भारतवर्ष और मिसरकी सभ्यता किसीके अनुकरणका फल नहीं है । किन्तु आधुनिक यूरोपकी सभ्यता और शिक्षा, जो इस समय सब जातियोंकी सभ्यता और शिक्षासे श्रेष्ठ समझी जाती है, कैसे सुसम्पन्न हुई ? इसका उत्तर यही है कि अनुकरणसे । रोम और यूनानकी सभ्यताके अनुकरणसे ही यूरो- पकी सभ्यता इस दर्जेको पहुँची है। रोमकी सभ्यता भी यूनानकी सभ्यताके अनुकरणका फल है । पुरावृत्त जाननेवालोंको मालूम है कि आजकल हिन्दु- स्तानी बाबू लोग अँगरेजोंका जितना और जैसा अनुकरण करते हैं, यूरोपियन लोगोंने पहलेपहल यूनानियोंका—विशेषकर रोमका—उससे कम अनुकरण नहीं किया । उन्होंने पहले अनुकरण किया, इसीसे आज वे उन्नतिके इतने ऊँचे सोपानपर विजय-वैजयन्ती लिये खड़े हुए हैं । लड़कपनमें दूसरेका हाथ पकड़कर जलमें उतरना जिसने नहीं सीखा, वह कभी तैरना नहीं सीख सकता । मास्टरके अक्षरोंको देखकर जिसने पहले लिखना नहीं सीखा, वह लिख नहीं सकता। हिन्दुस्तानी लोग अँगरेजोंका अनुकरण कर रहे हैं, यही उनके लिए आशा है।

किन्तु लोगोंको यह विश्वास है कि अनुकरणके द्वारा अव्वल दर्जेकी उन्नति नहीं हो सकती । क्यों भाई, कैसे?

पहले साहित्यको लीजिए। पृथ्वीके कुछ प्रथम श्रेणीके महाकाव्य केवल अनुकरणमात्र हैं । पोपने ड्राइडेन और बोयालोका अनुकरण किया है और

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