पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१३५

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बंकिम-निबन्धावली—
 

साहित्य भी ग्रीस और रोमके साहित्यका अनुकरण है । यूरोपका व्यवस्था- शास्त्र रोमके व्यवस्थाशास्त्रका अनुकरण है । यूरोपकी शासनप्रणाली भी रोमके अनुकरणपर संगठित हुई है। कहीं वह 'इम्पिरेटर' है, कहीं वही 'फोरम' है, कहीं वही 'प्लेब' श्रेणी है, कहीं वही 'म्यूनिसिपियम' है । आधुनिक यूरोपका स्थापत्य ( गृह-निर्माणकला ) और चित्रविद्याका मूल भी यूनान और रोमसे आया है। ये सब चीजें पहले-पहल अनुकरण मात्र थीं। अब अनुकरण छोड़कर और भी उन्नत होकर इन सब बातोंमें यूरोपियन लोग अपने गुरुसे भी बढ़े चढ़े हैं। मगर ऐसा होनेके लिए प्रतिभाकी बड़ी आवश्यकता है। प्रतिभाशाली लोग पहले अनुकरण करते हैं और फिर उसका अनुशीलन, अभ्यास और आलोचना करके स्वतन्त्रतापूर्वक पूर्वगामियोंसे आगे बढ़ जाते हैं । जो बच्चा पहले लिखना सीखता है, उसे पहले गुरुके हस्ताक्षरोंका अनु- करण करना पड़ता है। अन्तको उसके अक्षर अलग हो जाते हैं, और प्रतिभा होने पर तथा अभ्यास करने पर वह गुरुसे भी अच्छा लिख सकता है।

परन्तु, इसमें कोई सन्देह नहीं कि प्रतिभासे शून्य मनुष्य अगर अनुकरण करता है, तो उसका फल अच्छा नहीं होता। जिसमें जिस बातकी स्वाभाविक शक्ति नहीं, वह उस बातका सदा अनुसरण ही किया करता है, उसमें कुछ अपनी विचित्रता या स्वतन्त्रता दिखानेकी शक्ति कभी नहीं देख पड़ती। यूरोपके नाटक इसका एक उत्तम उदाहरण हैं । यूरोपकी जातियोंमें जो नाटककार हुए हैं, सबने यूनानी नाटकोंका अनुकरण किया है । किन्तु प्रतिभाशाली होनेके कारण स्पेन और इंग्लैंडके नाटक शीघ्र ही स्वतन्त्र रूपसे लिखे जाने लगे और इंग्लैंडने इस विषयमें ग्रीसके बराबर आसन जमा लिया। इधर इस विषयमें प्रतिभा अर्थात् स्वाभाविक शक्तिसे शून्य रोम, इटली, फ्रान्स और जर्मनीके लेखक केवल अनुकरण करनेवाले ही बने रहे । बहुत लोग कहते हैं कि रोम आदि देशोंके लोग जो नाटक-रचनामें स्पेन और इंग्लैंडके समकक्ष न हो सके, इसका कारण और कुछ नहीं उनके अनुकरणका अनुराग ही है। लेकिन यह भ्रम है । इसका कारण अनुकरणका अनुराग नहीं, उनमें नाटक-रचनाकी स्वाभाविक शक्तिका न होना ही है। अनुकरणकी इच्छा भी एक कार्य है, कारण नहीं।

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