पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१४४

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प्राचीना और नवीना।
 

कांश स्त्रियाँ जब कमर कसे, झाडू हाथमें लिये, ऊँची चोटी खड़ी किये, नथ हिलातीं सामने खड़ी हो जाती थीं, तब अनेक पुरुषोंका हृदय धड़क उठता था। जो पुरुष इस प्रकार आँगनमें खड़ी हुई रसीली स्त्रीके साथ वादानुवाद करनेका साहस करते थे, वे जरा सावधान होकर दूर खड़े होते थे। उस जमानेकी अधिकांश स्त्रियाँ लड़ने-झगड़नेमें खूब पक्की होती थीं। बात बातपर बिगड़कर झाडू मार देनेकी धमकी देना भी उनका एक साधारण स्वभाव था। यह भी नहीं कहा जा सकता कि उनकी भाषा साधुभाषा थी। क्योंकि वे आधुनिक 'प्राणनाथ' ‘प्रियतम ' शब्दोंकी जगह 'दाढ़ीजार' 'डोकरा' आदि निपात-साध्य शब्दोंका और 'सखी ' ' बहन ' आदि शब्दोंकी जगह ' हरामजादी' 'कलमुंही' आदि शब्दोंका प्रयोग करती थीं।

इस समय जिन सुन्दरियोंने अपने महावरसे रंगे हुए चरणोंद्वारा देश- भूमिको उज्ज्वल कर रक्खा है, उनकी प्रकृति भिन्न प्रकारकी है। पुराने जमा- नेकी सजधज—मोटी सेंदुरकी रेखा, मिस्सी, काजल, लहँगा, दुपट्टा आदि— कुछ भी नहीं है। पूर्वोक्त सम्बोधन भी अब उनके मुखसे नहीं सुन पड़ते । इस समय लहँगे-दुपट्टेके पुराने पहनावेकी जगह महीन और बढ़िया 'पाँचपाढ़' की धोती 'रूप' के जहाजकी 'पाल' बनकर सोहाग और आदरकी हवामें फरफराया करती है। चमचा, करछुई, झाडू, सुई-डोरेकी जगह अब उनके हाथमें कार्पेट और किताब देख पड़ती है। धोती एड़ीके नीचे तक रहती है। चोटी खुली हुई पीठपर पड़ी रहती है। शरीरमें दो एक सोफियाने गहनोंके सिवा और अलंकार नहीं देख पड़ते । धूल और कीचड़में काम करनेवाली कुलकामिनियाँ साबुन, एसेंस आदिकी महिमा समझ गई हैं। उनकी कलकण्ठध्वनि पपीहेकी सी आकाशको [जा देने वाली न होकर बहुत ही धीमी हो गई है । कहनेका मतलब यह कि प्राचीना स्त्रियोंकी अपेक्षा नवीना स्त्रियोंकी रुचि कुछ अच्छी है । स्त्रियोंकी रुचिका कुछ संस्कार हुआ है।

किन्तु हम यह नहीं कह सकते कि अन्यान्य विषयोंमें भी वैसी ही उन्नति हुई है। कई बातोंमें हम नवीना स्त्रियोंको निन्दाके योग्य समझते हैं। उनकी किसी तरहकी निन्दा करना हमारे लिए बड़ी बेअदबीकी बात

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