पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१४६

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प्राचीना और नवीना।
 

सामना रहता है। पहले लोग दीर्घजीवी होते थे, इस समय थोड़ी ही अवस्थामें मर जाते हैं । बहुत लोगोंका विश्वास है कि यह सब कालकी महिमा है—कलियुगके कारण ये सब अस्वाभाविक बातें हो रही हैं । बुद्धिमान् लोग जानते हैं कि स्वाभाविक नियम कभी समयके फेरसे बदल नहीं सकते । यदि इस समयके लोग बहुरोगी और अल्पायु होते हैं, तो अवश्य ही उसका कोई स्वाभाविक कारण है। उन सब स्वाभाविक कारणों में प्रधान कारण माताका परिश्रम न करना ही है । जिस देशके लोगोंकी उन्नतिका भरोसा शारीरिक बलके ऊपर निर्भर है, उस देशमें माताओंमें आलस्यकी ऐसी वृद्धि निस्सन्देह बहुत ही शोचनीय बात है।

आलस्यका तीसरा कुफल यह है कि नवीना स्त्रियाँ घरके कामोंको नहीं जानतीं—उनमें उन्हें कुछ भी निपुणता नहीं है । वे कभी उन कामोंको नहीं करतीं, इसीसे सीखती भी नहीं हैं । इससे अनेक अनिष्ट होते हैं । प्राचीना स्त्रियाँ, बहुत ही अमीर घरकी न होने पर, पानी भरती थीं, बर्तन माँजती थीं, आँगनमें झाडू देती थीं । रसोई बनाना उनका एक प्रधान कार्य था। यह कुछ उचितसे अधिक भी था। हम नवीना स्त्रियोंसे इतना सब करनेके लिए नहीं कहते । जिसकी जैसी अवस्था है वह उसीके अनुसार काम करे, इतना ही यथेष्ट है। किन्तु केवल कार्पेट बुनकर या किताब पढ़कर समय बिताना हमारी समझमें ठीक नहीं । परस्परका सुख बढ़ानेके लिए सबका जन्म हुआ है। जिस स्त्रीने पृथ्वीपर आकर पलँगपर लेटे लेटे, सामने आईना रख कर, बाल सँवारनेमें, कार्पेट बुनने में, पुस्तक पढ़ने में और सन्तान उत्पन्न करने में ही समय बिता दिया, अपने सिवा और किसीके सुखको नहीं बढ़ाया, वह स्त्री पशुजातिकी अपेक्षा कुछ अच्छी चाहे मानी जा सकती हो, किन्तु उसका स्त्री-जन्म निरर्थक है । ऐसी स्त्रियोंको हम फाँसी लगाकर मर जानेकी सलाह देते हैं। क्यों कि वैसा करनेसे अनेक निरर्थक भारोंकी यन्त्रणासे पृथ्वी बच जायगी।

गृहिणी अगर गृहकर्म नहीं जानती, तो चिररोगिणी गृहिणीके घरकी तरह उसके घरकी सब बातोंकी श्रृंखला नष्ट हो जाती है । धनसे कुछ उपकार नहीं होता, अनर्थक व्यय होता है, घरमें खरीद कर लाई गई सामग्री लुट जाती है—आधेके लगभग नौकर-चाकर और आने-जानेवाले

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