पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१४७

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बंकिम-निबन्धावली—
 

लोग टहला देते हैं। बहुत धन खर्च होने पर भी खानेपी की सामग्री कम पड़ जाती है। अच्छी सामग्रीकी लागत लगाकर भी बुरी सामग्री काममें लानी पड़ती है । घरके स्वामीको अच्छी चीज खाने-पीने बरतनेको नहीं मिलती। घरकी औरतोंमें अनबन पैदा हो जाती है । अतिथि-अभ्यागतका उपयुक्त सत्कार नहीं होता । घर कण्टकमय जान पड़ने लगता है।

२—नवीना स्त्रियोंका दूसरा दोष धर्मसे सम्बन्ध रखता है । हम इस समयकी देशकी स्त्रियोंको अधार्मिक नहीं कहते । देशके नवयुवकोंकी अपेक्षा वे धर्मभक्त और विशुद्ध हृदयकी हैं । किन्तु प्राचीना स्त्रियोंकी अपेक्षा धर्मका भाव उनमें अवश्य कम है । विशेष कर जो धर्म गृहस्थके धर्म कह- लाते हैं, उनकी आज कलकी युवतियोंमें कमी देखकर कष्ट होता है।

स्त्रियोंका पहला धर्म पातिव्रत्य है । पातिव्रत्य धर्ममें अबतक इस देशकी स्त्रियाँ अद्वितीय हैं । किन्तु पहले जो था वह क्या अब भी है ? इस प्रश्नका उत्तर जल्दी नहीं दिया जा सकता । पुराने जमानेकी स्त्रियोंका पातिव्रत्य जिस तरह प्रेमकी दृढ़ गाँठसे हृदयमें बँधा हुआ था—पातिव्रत्य जैसे उनकी अस्थि, मज्जा और रक्तमें बसा हुआ था, वैसे ही वही बात, क्या नये जमानेकी स्त्रियों में भी है ? अनेक स्त्रियों में वही बात है, किन्तु क्या अधिकांश स्त्रियोंमें वही बात पाई जाती है ? नये जमानेकी स्त्रियाँ पतिव्रता अवश्य हैं, किन्तु उन्हें जितना लोक-निन्दाका भय है, उतना धर्मका भय नहीं है।

इसके सिवा दान आदिमें पुराने जमानेकी स्त्रियोंकी जैसी रुचि थी, वैसी रुचि नये जमानेकी स्त्रियोंमें नहीं पाई जाती । तबकी स्त्रियोंको दृढ़ विश्वास था कि दान परमार्थका कार्य है। जो दान करता है, वह स्वर्गको जाता है। अबकी स्त्रियोंको स्वर्गपर उतना दृढ़ विश्वास नहीं है—उनको परलोकमें स्वर्ग पानेकी कामना उतनी प्रबल नहीं है । अँगरेजी सभ्यताके फलसे देशमें अनेक प्रकारकी सामग्रीकी अधिकता होनेसे सबको धनकी अधिक आवश्यकता हो गई है। स्त्रियोंको भी धनकी अधिक आवश्यकता हो गई है। इसीसे इस समय दानमें स्त्रियोंका उतना अनुराग नहीं देख पड़ता । उतना दान करनेसे उनका खर्च पूरा नहीं होता । रुपयेसे जो सुख खरीदे जाते हैं, उनकी संख्या और विचित्रता बढ़ गई है । दानमें अधिकता होनेसे इस

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