पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
बंकिम-निबन्धावली—
 

यह अवश्य है कि साधारण धर्मशिक्षकोंके द्वारा पृथ्वीपर जिस रूपमें धर्मकी स्थापना हुई है वह प्रीतिकर नहीं है। इस देशके आधुनिक धर्मा- चार्य जिस हिन्दू धर्मकी व्याख्या और रक्षा करते हैं उसकी मूर्ति भयानक है। आजकलके अध्यापक और पुरोहित महाशयोंकी समझमें व्रत, प्रायश्चित्त, पृथ्वीके सब सुखोंके प्रति वैराग्य, और अपनेको पीड़ित करना ही धर्म है। गर्मियोंमें बहुत ही गर्मी और प्यासके मारे अगर थोडासा बर्फका पानी मैंने पी लिया, तो मेरा धर्म नष्ट हो गया ! ज्वर चढ़ा हआ है, मैं पलँगपर पड़ा हुआ हूँ, कष्टके मारे दम निकला जा रहा है, डाक्टरने मेरे प्राणोंकी रक्षाके लिए अगर ओषधिके साथ चार पाँच बूंद ब्राण्डी दे दी, तो बस मेरा धर्म नष्ट हो गया ! आठ नव वर्षकी लड़की विधवा हो गई है। जिस ब्रह्मचर्यके बारेमें वह कुछ नहीं जानती और जिस ब्रह्मचर्यका पालन साठ वर्षकी बुढ़ियाके लिए भी कठिन है, उसी ब्रह्मचर्यके द्वारा पीड़ा पहुँचाकर उस बालिकाको रुलाये बिना धर्मकी रक्षा नहीं हो सकती ! धर्मोपार्जन करना हो तो पुरो- हितका घर भरो, गुरुको दो, बेकार, स्वार्थपर, लोभी, कुकर्मी, भिक्षुक ब्राह्म- णोंको दो। महाकष्टसे कमाया हुआ अपना धन कुपात्रों और अपात्रोंको दे डालो। यह मूर्ति धर्मकी मूर्ति नहीं है—यह एक उत्कट पैशाचिक कल्पना है। तथापि लड़कपनसे हम इसीका नाम धर्म सुनते आते हैं। पाठकोंका इससे पिशाच या राक्षसकी तरह डरना कुछ असंगत नहीं है।

जो लोग शिक्षित हैं, अर्थात् जिन्होंने अँगरेजी पढ़ी है, वे इसे तो धर्म नहीं मानते, किन्तु वे और एक आफतमें फँस गये हैं। उन्होंने अँगरेजीके साथ ईसाई धर्मको भी सीख लिया है। उस शिक्षाके लिए बाइबल नहीं पढनी पड़ती। विलायती साहित्य ही उस धर्मसे सराबोर है। हम लोग ईसाई धर्मको ग्रहण करें या न करें, धर्मका नाम सुनते ही उसी धर्मको समझते हैं। किन्तु उसकी और भी भयंकर मूर्ति है। परमेश्वरका नाम लेते ही उसी ईसाइयोंके परमेश्वरका स्मरण हो आता है। परन्तु वह ईसाइयोंका परमेश्वर इस पवित्र नामके सर्वथा अयोग्य है। इसमें सन्देह नहीं कि वह विश्व-संसारका राजा है, लेकिन इसमें भी सन्देह नहीं कि कोई नर-पिशाच भी वैसा प्रजापीडक, अत्याचारी और विचारशून्य नहीं हो