पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१५०

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तीन ढंग।
 

प्राचीन पुरुषोंकी अपेक्षा नवीनोंमें अधिक गुण यही देख पड़ता है कि तुम लोगोंने अँगरेजी पढ़ ली है। किन्तु अँगरेजी पढ़कर तुमने किसका क्या उपकार किया है? मैं तो देखती हूँ, अँगरेजी पढ़कर तुम केवल कुर्की करना सीख गये हो। किन्तु मनुष्यत्व ? सुनो, प्राचीन और नवीन पुरुषोंमें भेद क्या है। प्राचीन लोग परोपकारी थे; तुम लोग केवल अपना उपकार करना जानते हो । प्राचीन लोग सत्यवादी थे, तुम लोग केवल प्रियवादी हो । प्राचीन लोग पिता-माताकी भक्ति करते थे, तुम लोग भक्ति करते हो पत्नी या उप-पत्नीकी । प्राचीन लोग देवता-ब्राह्मणकी पूजा करते थे, तुम्हारे देवता गोरी जाति और तुम्हारे ब्राह्मण सुनार हैं। प्राचीन लोग पौत्तलिक (मूर्तिपूजक) थे, तो तुम लोग बोतलिक हो। सिंहवाहिनी 'शक्ति'की जगह तुम बोतल-बाहिनी मदिराकी उपासना करते हो। ब्राण्डी, रम, बियर तुम्हारे ब्रह्मा, विष्णु, महेश हैं। तुम लोग भ्रातृस्नेह उसके प्रति दिखाते हो, जिसकी लड़कीसे अपना लड़का ब्याहना चाहते हो। घोड़े और कुत्तेके प्रति पुत्र-वात्सल्य दिखाते हो। पितृभक्ति आफिसके मेनेजर साहबके प्रति और मातृभक्ति रसोई बनानेवाली महाराजिनके प्रति दिखाते हो। यह सच है कि हम अतिथि-अभ्या- गतके आनेसे उसे महाविपत्ति समझती हैं, किन्तु तुम लोग तो उन्हें गरदनिया देते हो। हममें आलस्य है; किन्तु तुम लोग केवल आलसी ही नहीं हो— तुम लोग बाबू हो! अँगरेज बहादुर नाकमें नाथ डालकर तुमको कोल्हूके बैलकी तरह घुमाते हैं; बल न होनेके कारण तुम घूमते हो। इधर हम भी तुमको नाकमें रस्सी डालकर घुमाती हैं और बुद्धि न होनेके कारण तुम मजेसे घूमते हो। हमने अच्छी तरह लिखना-पढ़ना नहीं सीखा, इससे हमारे धर्मबन्धन नहीं है, और तुम्हारे ? तुम्हारे धर्मका बन्धन बहुत दृढ़ है ! क्योंकि तुम्हारे उस बन्धनकी रस्सीको एक ओर मदिराका व्यापारी और दूसरी ओर वेश्या पकड़े खींच रही है। तुम लोग तो धर्मकी रस्सीसे शराबकी गैलन गलेमें बाँध- कर प्रेमके सागरमें फाँद रहे हो और बेचारी नवीना स्त्रियोंपर खूनका इलजाम लगाया जाता है ! तुम्हें धर्मका भय क्या है ? तुम किसे मानते हो? ठाकुर- देवताको ? ईसामसीहको ? धर्मको मानते हो? पुण्य मानते हो ? कुछ नहीं— केवल हमारे इन महावरसे रंगे कड़े-छड़े-बलय आदिसे विभूषित श्रीचरणोंको मानते हो; सो भी लातोंके डरसे।

—श्रीचण्डिकासुन्दरी देवी।
 

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