पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१६७

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बंकिम-निबन्धावली―
 


महा तरंगोंसे भीषण बाजा बजाकर, लहरके ऊपर लहर उठाकर हम क्रीड़ा करेंगी। आओ सब नीचे उतरें।

कौन युद्ध करेगा―वायु? हिश! वायुके कंधेपर चढ़कर हम देश-देशा- न्तरमें घूमेंगी। हमारे इस वर्षा-युद्ध में वायु हमारा घोड़ा है―उसकी सहायता पावें, तो हम जल-थल एकाकार कर दें। हवाकी सहायता मिलनेसे हम बड़े बड़े घरोंको ढहा देनेकी शक्ति रखती हैं। वायुके कन्धेपर चढ़कर हम लोगोंके घरोंके दरवाजोंके भीतर घुसती हैं। युवतीकी बड़े यत्नसे बिछाई हुई शय्याको हम भिगो देती हैं―सोती हुई सुन्दरीके ऊपर जाकर गिर पड़ती हैं। वायु तो हमारा गुलाम है।

दखो भाई, कोई अकेले न नीचे उतरना। एका ही हमारा बल है। नहीं तो हम कुछ भी नहीं हैं। चलो―हम क्षुद्र वृष्टि-बिन्दु हैं―किन्तु पृथ्वीके प्राणोंकी रक्षा करेंगी। खेतोंमें अन्न उपजावेंगी–मनुष्योंके प्राणोंकी रक्षा होगी। नदियों में नावें चलेंगी, मनुष्योंका रोजगार चलेगा। तृण लता वृक्ष आदिको पुष्ट करेंगी―पशु पक्षी कीट पतंग जीवन पावेंगे। हम क्षुद्र वृष्टि-बिन्दु हैं, पर हमारे समान कौन है? हम ही संसारकी रक्षा करती हैं।

तो फिर आ नवनील मेघमाला! आ वृष्टि-बिन्दुओंकी जननी! आ माता दिङ्मण्डलव्यापिनी! सूर्यतेजसंहारिणी! आ, आकाशमण्डलको घेर ले, हम नीचे उतरें! आओ बहन सुहासिनी सौदामिनी! वृष्टि-बिन्दुकुलके मुखको उज्ज्वल करो। हम हँसती नाचती हुई पृथ्वीतलपर उतर पड़ें। तुम वृत्रासुरके मर्मस्थलको काटनेवाला वज्र हो, तुम भी गरजो। इस उत्सवमें तुम्हारे सिवा और उपयुक्त बाजा कौन है? तुम भी पृथ्वीतलपर गिरोगी? गिरो, किन्तु केवल गर्वसे उन्नत मस्तकपर ही गिरना। इस परोपकारी क्षुद्र अनके ऊपर मत गिरना। हम इसकी रक्षा करने जाती हैं। गिरना हो, तो इस पर्वतके शिखरपर गिरो। जलाना हो तो इन चोटीपरके पेड़ोंको जलाओ। क्षुद्रसे कुछ न बोलना। हम क्षुद्र हैं, क्षुद्र के लिए हमारे हृदयमें बड़ी व्यथा होती है।

देखो देखो, हमें देखकर पृथ्वीपरके लोगोंका आह्वाद देखो। पेड़ बगैरह सिर हिला रहे हैं―नदी हिल डुल रही है। बड़े बड़े वृक्ष सिर झुकाकर

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