पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१६९

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बंकिम-निबन्धावली—
 

कहाँ, हमारे तो कुछ भी प्रकाश नहीं है । इस अन्धकारमें पृथ्वीपर जन्म लेकर हम किसके मार्गमें प्रकाश डाल सके हैं ? हमें देखकर अन्धकारमें, दुस्तर मैदानमें, दुर्दिनमें, संकटमें किसने कहा है कि आओ भाई, चलो चलो, वह देखो, प्रकाश हो रहा है—चलो, यही प्रकाश देखकर राह चलो ? अन्धकार है—इस पृथ्वीमें भाई बड़ा अन्धकार है—राह चलना कठिन है। जब चन्द्र-सूर्य रहते हैं, तब राह चलता हूँ—नहीं तो चल नहीं सकता । तारागण आकाशमें उदय होकर कुछ प्रकाश अवश्य करते हैं, किन्तु दुर्दिनमें वे भी नहीं देख पड़ते। चन्द्र-सूर्य भी सुदिनके हैं, दुर्दिनमें—दुःसमयमें जब मेघकी घटा, बिजलीकी छटा, रात और घोर वर्षा होती है, तब कोई नहीं होता। मनुष्य-निर्मित वन्यकी तरह वे भी कहते हैं—Hora non numero visi serenos! केवल तुम जुगनू,—क्षुद्र, क्षीण प्रकाश- वाले, घृणित, सहजमें मार डालनेके योग्य, सर्वदा मरे रक्खे हुए तुम जुगनू— उस अन्धकार दुर्दिन में, वर्षामें देख पड़ते हो। तुम ही अन्धकारमें प्रकाश हो। मैं तुमको प्यार करता हूँ।

मैं तुमको प्यार करता हूँ। क्योंकि तुममें थोड़ा, बहुत थोड़ा, प्रकाश है। तुम भी अन्धकारमें हो, और भाई मैं भी घोर अन्धकारमें हूँ। अन्ध- कारमें क्या सुख नहीं है ? तुम भी अन्धकारमें बहुत घूमे हो, भला बत- लाओ, अन्धकारमें सुख नहीं है? जब आधी रातकी बदलीके अन्धकारमें जगत् ढंक जाता है, वर्षा होती है, बंद हो जाती है, और फिर होने लगती है—चन्द्रमा नहीं, तारा नहीं, आकाशकी नीलिमा नहीं, पृथ्वीपर दीपक नहीं, खिले हए फूलोंकी शोभा तक नहीं—केवल अन्धकार ही अन्धकार होता है—केवल अन्धकार ही होता है और तुम होते हो—तब बतलाओ अन्धकारमें क्या सुख होता है ? उस समय अन्धकारपूर्ण संसार और तुम ही होते हो। जगतमें अन्धकार होता है और श्यामल स्निग्ध वृक्षोंर्क पत्तियोंके बीच तुम चमकते फिरते हो। बतलाओ भाई, उस अन्धकार सुख है या नहीं?

मैं तो कहता हूँ कि है। नहीं तो किस साहससे तुम इस अन्धकारक बहियामें और मैं इस सामाजिक अँधेरेमें, इस घोर दुर्दिनमें, संसारवं

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