पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१८०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
सांख्यदर्शन ।
 

है, परन्तु हमें संसारमें सुखकी अपेक्षा असुख या दुःख ही अधिक दिखलाई देता है। तुम कहोगे कि ईश्वरने जो सब नियम बना दिये हैं, उनके अनुसार चलनेसे कोई दुख नहीं होता, नियमोंके बार बार लंघनसे ही इतने दुःख दिखलाई देते हैं। मैं कहता हूँ कि जब ईश्वरने ऐसे सब नियम बनाये हैं कि वे बहुत ही सहजमें लंघन किये जा सकते हैं और जब उनके लंघनकी प्रवृत्ति भी उसने अतिशय बलवती बना दी है, तब यह कैसे कहा जा सकता है कि उसका अभिप्राय नियमोंका लंघन करना नहीं किन्तु उनकी रक्षा करना है ? जब शराब पीना मनुष्यके लिए अतिशय दुःखदायक है, तब शराब पीनेकी प्रवृत्ति मनुष्यके हृदयमें रोपी ही क्यों गई ? और शराब पीना इतना सुसाध्य और शीघ्रसुखकर क्यों हुआ? कितने ही नियम इतने सहजमें लंघन किये जा सकते हैं कि उनके लंघन करनेके समय कुछ भी नहीं जाना जाता। डाक्टर आंगस स्मिथकी परीक्षासे प्रमाणित हो गया है कि कभी कभी बहुत ही अनिष्ट करनेवाली कार्बोनिक एसिडसे मिली हुई वायु भी श्वासमें ले लेनेसे कष्ट नहीं होता है। चेचक आदि बीमारियोंके विष-बीज, हमें मालूम ही नहीं होता कि कब हमारे शरीरमें प्रविष्ट हो जाते हैं। अनेक नियम ऐसे भी हैं कि उनका उल्लंघन करनेसे हम सदा ही कष्ट पाते हैं, किन्तु वे नियम क्या हैं, यह जाननेकी हम लोगोंमें शक्ति नहीं। हैजा (विशूचिका) की बीमारी क्यों होती है, यह हम अब तक नहीं जान पाये, पर इससे प्रतिवर्ष लाखों आदमी मर जाते हैं। यदि ईश्वरने नियमोंके लंघन करनेकी शक्ति देकर नियमोंको जानने नहीं दिया, तो इसमें उसकी जीवोंके प्रति मङ्गलकामना कहाँ प्रकट होती है ? किसी पण्डित पिताके मूर्ख पुत्र उत्पन्न हो गया है और इससे वह रात दिन दुखी रहता है; मान लो कि उसकी उस मूर्खताका जन्म शिक्षाके अभा- वसे नहीं हुआ है, वह स्थूल बुद्धि (मोटी अक्ल) लेकर ही जन्मा है। तब किस नियमके लंघन करनेसे पुत्रका मस्तिष्क अपूर्ण रह जाता है, यह बात क्या कभी मनुष्यबुद्धिके लिए सुगम हो जायगी ? मान लो कि भविष्यतमें हो जायगी; परन्तु जब तक उस नियमका आविष्कार न होगा, तब तक तो मनुष्य जाति दुख पाती रहेगी? और तब यह कैसे कहा जा सकता है कि यह दुख पाना सृष्टिकर्ताको अच्छा नहीं लगता है ?

१६७