पृष्ठ:बंकिम निबंधावली.djvu/१८९

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बंकिम-निबन्धावली—
 

न कहा गया हो, न सही, तथापि इस दर्शनको निरीश्वर कहना होगा। ऐसा शायद ही कोई नास्तिक होगा, जो कहता होगा कि ईश्वर नहीं है। जो कहता हो कि इस प्रकारका कोई प्रमाण नहीं है जिससे यह सिद्ध हो सके कि 'ईश्वर है', उसको भी नास्तिक कहना चाहिए।

'जिसके अस्तित्वका प्रमाण नहीं है,' और 'जिसके अनस्तित्वका प्रमाण है' ये दो जुदा जुदा बातें हैं । लाल रंगके कौएके अस्तित्वका कोई प्रमाण नहीं है, परन्तु साथ ही उसके अनस्तित्वका भी कोई प्रमाण नहीं है। किन्तु ऐसे चतुष्कोणके अनस्तित्वका प्रमाण है कि जो गोलाकार हो। यह तो निश्चित है कि आप गोलाकार चतुष्कोण नहीं मानेंगे; किन्तु पूछना यह है कि लाल- रंगका कौआ मानेंगे या नहीं? जिस तरह उसके अनस्तित्वका प्रमाण नहीं है, उसी प्रकार उसके अस्तित्वका भी प्रमाण नहीं है। जहाँ अस्तित्वका प्रमाण नहीं है, वहाँ हम नहीं मानेंगे । अनस्तित्वका प्रमाण नहीं है, तो न रहने दो, परन्तु जब तक अस्तित्वका प्रमाण नहीं पावेंगे, तब तक कभी न मानेंगे। हाँ, जब अस्तित्वका प्रमाण पा जावेंगे, तब मान लेंगे। प्रत्ययका या विश्वासका यही प्रकृत नियम है। जो विश्वास इससे उलटा है, वह भ्रान्ति है। "यद्यपि अमुक पदार्थ है, ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता है, तथापि वह हो, तो हो भी सकता है" ऐसा सोचकर जो उस पदार्थके अस्तित्वकी कल्पना कर लेते हैं, वे भ्रान्त हैं। अतएव नास्तिकगण दो प्रकारके हुए। एक तो व जो केवल ईश्वरके अस्ति- खके प्रमाणाभाववादी हैं। वे कहते हैं कि ईश्वर हो तो हो भी सकता है; परन्तु वह 'है', ऐसा कोई प्रमाण नहीं है। दूसरे प्रकारके नास्तिक वे हैं जो कहते हैं कि केवल ईश्वरके अस्तित्वके प्रमाणोंका ही अभाव नहीं है। इस बातके भी अनेक प्रमाण हैं कि ईश्वर नहीं है। आधुनिक यूरोपके अनेक लोग इसी मतके मान- नेवाले हैं। एक फरासीसी लेखक कहता है--" तुम कहते हो कि ईश्वर निराकार है, किन्तु साथ ही उसे चेतनादि मानसिकवृत्तिविशिष्ट भी बतलाते हो। क्या तुमने कहीं चेतनादि मानसिक वृत्तियोंको शरीरसे जुदा देखा है ? यदि कहीं नहीं देखा, तो या तो ईश्वर साकार है अथवा उसका अस्तित्व ही नहीं है। ईश्वरको तुम साकार तो कभी मानोगे नहीं, अतएव यही मानना पड़ेगा कि ईश्वर नहीं है।" यह दूसरे प्रकारका नास्तिक है।

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